एक बदहाल प्रकाशक की कहानी / बलराम अग्रवाल

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  • बलराम अग्रवाल
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  • 'रसीदी टिकट' पुस्तक के उत्कृष्ट उत्पादन के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित श्रीकृष्ण जी
    कई दशक पहले निर्माता-निर्देशक-अभिनेता मनोज कुमार ने कहा था कि फिल्मों में अंडरवर्ल्ड का पैसा लग रहा है। यह ईमानदार फिल्म निर्माता-निर्देशकों के सिरों पर शनै: शनै: छाते जाते अंडरवर्ल्ड आतंक की ओर इशारा भर था, जिसे शायद ही गम्भीरतापूर्वक सुना-समझा गया हो। विभिन्न प्रकाशक मित्रों के बीच बैठकर इधर-उधर से बहुत-सी बातें सुनाई देती हैं तो आज बल्क पुस्तक खरीद का माहौल लगभग वैसा ही महसूस होता है। किसी दूसरे को क्या, आज स्वयं को भी ईमानदार कहना अपने साथ बेईमानी करने जैसा है लेकिन यह सच है कि भ्रष्टाचार के दलदल में फँसे होने के बावजूद, अधिकतर लोग ईमानदारी से व्यवसाय करने के पक्षधर हैं, बशर्ते वैसा माहौल उपलब्ध कराया जाए। बेईमान माहौल में केवल बेईमान और पूँजीवादी ही पनपते हैं, ईमानदार और मेहनतकश नहीं। यही कारण है कि इन दिनों मेहनतकश और ईमानदार पुस्तक व्यवसायी स्वयं को बेहद विवश महसूस कर या भ्रष्टाचार के दलदल में कूद पड़े हैं या बाज़ार से मालो-असबाब समेटने और बाहर खिसकने के रास्ते पर पड़ चुके हैं। राष्ट्रीय से लेकर स्थानीय स्तर के अनेक पत्रकार, सम्पादक-लेखक-आलोचक और नौकरशाह बल्क पुस्तक खरीद केन्द्रों और प्रकाशकों के बीच कमीशन-एजेंट का लाभकारी धन्धा अपनाए हुए हैं। ऐसे माहौल में लेकिन कितने लेखकों, पत्रकारों, प्रकाशकों और पुस्तक व्यवसायियों को आज पता है कि अमृता प्रीतम की ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त कृति रसीदी टिकटकी रूपसज्जा आदि के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित, पराग प्रकाशन को समग्र स्तरीयता प्रदान करने वाले तथा बाल नाटककार के रूप में विभिन्न राज्यों की साहित्यिक संस्थाओं द्वारा अनेक बार पुरस्कृत श्रीकृष्ण आज कहाँ हैं और किस हालत में हैं? गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के स्कूल पाठ्य-पुस्तकों में उनके बाल नाटक संकलित होते रहे हैं।
    व्यावसायिक दृष्टि से देखें तो पराग प्रकाशन का डूबना वैसा ही है जैसा व्यावसायिक कूटदृष्टि से हीन किसी भी संस्थान का डूबना होता है। एक व्यवसायी कभी भी दूसरे व्यवसायी की व्यावसायिक मौत पर नहीं रोता। लेकिन श्रीकृष्ण द्वारा संचालित पराग प्रकाशन का डूबना मेरी दृष्टि में हिन्दी प्रकाशन व्यवसाय के एक टाइटेनिक का डूबना है। उसके डूबने पर उसके हर लेखक, संपादक को रोना चाहिए था, परन्तु किसी ने उफ् तक नहीं की। मेधा प्रकाशन ने श्रीकृष्ण जी के कुछ बाल नाटकों का एक संग्रह अभिनेय बाल नाटक शीर्षक से प्रकाशित किया था। तब मुझे साथ लेकर अजय भाई उनके नोएडा स्थित निवास पर गए थे। 2010 में श्रीकृष्ण जी से हम दो बार मिलकर आए थे, उसके बाद जनवरी 2011 में जा पाए; लेकिन अफसोस की बात है कि उसके बाद हम पुन: उनसे मिलने जाने का समय नहीं निकाल पाए जबकि हमें जाते रहना चाहिए था। 11 जनवरी 2011 को हमारे जाने से कुछ ही माह पहले उन्हें पक्षाघात हुआ था और उनके शरीर के बाएँ हाथ-पैर ने काम करना बन्द कर दिया था। सुनने की ताकत तो उनकी काफी समय पहले क्षीण हो गयी थी, अब स्मृति भी क्षीणता की ओर है। शारीरिक रूप से अक्षमता की ऐसी हालत में वे पति-पत्नी समीप ही रह रही अपनी एक बेटी रजनी पर आश्रित हैं। परिवार सहित वही उनकी देखभाल करती है।
    श्रीकृष्ण जी पर कथाकार-पत्रकार बलराम और उपन्यासकार रूपसिंह चन्देल ने अपने-अपने संस्मरण लिखे हैं। इनके अलावा भी कुछ लोगों ने लिखे हो सकते हैं, लेकिन वे मेरी दृष्टि से नहीं गुजरे, क्षमा चाहता हूँ। 15 अक्टूबर, 1934 को जन्मे श्रीकृष्ण जी छ: पुत्रियों के पिता हैं। सभी पुत्रियाँ विवाहित हैं, सुखी हैं। मिलने आने वालों की बात चली तो पति-पत्नी दोनों को मात्र एक नाम याद आयायोगेन्द्र कुमार लल्ला जी। रजनी ने भी कहा कि लल्ला जी अंकल कभी-कभार आते हैं। उनके अलावा तो श्रीकृष्ण जी ने कहा कि—‘जिस-जिस की भी अपने भले दिनों में खूब मदद की थी, उनमें से कोई नहीं मिलने आता है। किसी और की क्या कहूँ, खुद मेरा सगा भाई भी अभी तक मुझे देखने नहीं आया है। ठीक ही कहा है कि जो पेड़ कितने ही परिन्दों को आश्रय और पथिकों को छाया व फल देता है, बुरे वक्त में वे सब उसका साथ छोड़ जाते हैं। आप लोग मिलने आ गये, यह बहुत बड़ी बात है…कौन आता है!…नरेन्द्र कोहली कहते थे कि मेरा नाम पराग प्रकाशन की देन है, लेकिन अब वे भी…।
    प्रकारान्तर से रामकुमार भ्रमर का नाम भी उनकी जुबान पर आया। बहुत तरह से वे पति-पत्नी बहुत लोगों को याद करते हैं। हिमांशु जोशी आदि अनेक प्रतिष्ठित लेखकों के वे प्रथम प्रकाशक रहे हैं। अतीत की बातें सुनाते हुए कभी वे खुश होते हैं, कभी उदास। यहाँ बहुत अधिक न कहकर तभी लिए गए उनके कुछ फोटो दे रहा हूँ। इन्हीं से उनकी स्थिति का किंचित अन्दाज़ा आप लगा सकते हैं।

    3 टिप्‍पणियां:

    आपके आने के लिए धन्यवाद
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