दिल्‍ली की हत्‍यारी मेट्रो और मेरी प्‍यारी बिटिया : मेट्रो को मैनुअल कर दिया जाए


अब तेरे दरवाजे मैनुअल किए जाएंगे
मेट्रो रेल दिल्‍ली में यात्रियों के साथ इतनी मारामारी कर चुकी है कि अब उसे मैनुअल करने का वक्‍त आ गया है। यह तकनीक से वापसी है क्‍योंकि तकनीक जानलेवा सिद्ध हो रही है और उसमें सिर्फ मशीनी चूक ही नहीं, मानवीय लापरवाही भी जिम्‍मेदार है। मैनुअल से अगर मेरे कहने का आशय यह लगाया जाए कि इसके दरवाजे यात्रियों के कंट्रोल में हों या प्रत्‍येक कोच के दरवाजों पर मेट्रो के मैन मुस्‍तैद किए गए हों जो अपनी आंख के साथ अपना दिमाग भी खुला रखें क्‍योंकि रोजाना मशीनरी लापरवाही के साथ मेट्रो चालकों की गलतियां भी लोगों की जान से खिलवाड़ करने से बाज नहीं आ रही हैं। मेट्रो को धक्‍का देकर चलाने का मैं हिमायती इसलिए नहीं हूं क्‍योंकि बिजली इत्‍यादि फेल होने की दशा में अगर उसे धक्‍का दिया जाएगा तो वह पीछे लौट कर उसे धक्‍का देने वालों की जान भी लील सकती है।
ताजा हादसा कल दिनांक 1 फरवरी 2012 की दोपहर बाद का रमेश नगर मेट्रो स्‍टेशन का है जब मेरी इकलौती प्‍यारी बिटिया संचिता अपनी एक सहेली के साथ घर वापसी के लिए मेट्रो ट्रेन में सवार होने के लिए खड़ी थी। मेट्रो आई, प्‍लेटफार्म से चढ़ने के लिए इन दोनों के अतिरिक्‍त कोई और नहीं था। मेट्रो चालक ने देखा होगा, उसे कोई दिखाई नहीं दिया होगा इसलिए उसने दरवाजे खोले और तुरंत ही वापिस बंद कर दिए। मेरी बेटी महिला कोच में चढ़ने के लिए बढ़ चुकी थी कि एकाएक उसमें फंस गई। अंदर से महिलाओं ने शोर मचाया। उधर चालक को भी अनहोनी की आशंका हुई होगी और उसने तुरंत दरवाजा वापिस खोल दिया लेकिन मेरी बिटिया वापिस प्‍लेटफार्म पर उतर गई। उसके हाथ वगैरह पर जोरदार दवाब पड़ चुका था। वह बहुत डर गई थी। उसके बाद मेट्रो तो चली गई, मैं तो कहूंगा कि फरार हो गई।
मेरी बिटिया की या कहूं कि मेरी किस्‍मत अच्‍छी थी जो वह बच गई। अगर कुछ अनहोनी हो जाती तो मेट्रो यात्रियों की कमी निकालने से गुरेज नहीं करता और अपनी चालक की गलती के लिए उसे ही दोषी ठहरा देता। मेट्रो में सीसीटीवी कैमरों के जरिए रिकार्डिंग की व्‍यवस्‍था है इसलिए इस घटना की जांच की जा सकती है। लेकिन यह जांच भी अन्‍य रुटीन जांच की तरह ठंडे बस्‍ते में डाल दी जाएगी। इससे अधिक खतरनाक हादसे बेनागा नियमित तौर पर मेट्रो में हो रहे हैं परंतु उन्‍हें रोकने के लिए कोई व्‍यावहारिक कोशिशें नहीं की गई हैं। पहले महिलाएं महिलाओं की दुश्‍मन के तौर पर कुख्‍यात रही हैं और अब यह जिम्‍मेदारी मेट्रो रूपी महिला ने संभाल ली है। मैं फिर से दोबारा अपनी बात दोहरा रहा हूं कि मेट्रो प्रबंधन इस सलाह पर गंभीर होकर गौर करे कि प्रत्‍येक कोच के दरवाजों पर मेट्रो के मैन मुस्‍तैद किए गए हों जो अपनी आंख के साथ अपना दिमाग भी खुला रखें क्‍योंकि रोजाना मशीनरी लापरवाही के साथ मेट्रो चालकों की गलतियां भी लोगों की जान से खिलवाड़ करने से बाज नहीं आ रही हैं। यह व्‍यवस्‍था मेट्रो के भीतर और बाहर दोनों तरफ से की जाए ताकि इस व्‍यवस्‍था के फेल होने का डर न रहे।
मेट्रो प्रबंधन को भी इसकी सूचना उनकी साइट व ई मेल पर आवश्‍यक कार्यवाही व जांच के लिए भेजी जा रही है। हिंदी चिट्ठाकारों में से वह साथी जो मेट्रो में कार्यरत् हैं और जो मेट्रो समूह से किसी भी तौर पर जुड़े हों या न जुड़े हों, इस दुर्घटना को अपने अपने चिट्ठों, फेसबुक प्रोफाइल और समाचार पत्र/पत्रिकाओं में प्रकाशित कर समस्‍या को दूर करने में अपना सक्रिय योगदान दें।

9 टिप्‍पणियां:

  1. जी , ज़रूरी है इस और ध्यान देना कि जो सुविधाएँ लोगों के लिए बनी हैं वे लापरवाही में जानलेवा न बन जाएँ.....

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  2. जानलेवा लापरवाही ||


    क्या आपकी उत्कृष्ट-प्रस्तुति

    शुक्रवारीय चर्चामंच

    की कुंडली में लिपटी पड़ी है ??

    charchamanch.blogspot.com

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  3. तो यह बात है...
    आज ही जाकर क्लास लेते हैं मेट्रो में कार्यरत साथी की...

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  4. bahut sahi mudda uthaya hai , ye sirph apaki beti ka hi savaal nahin hai balki aur bhi kai aise hadase ho chuke hain. isa par aavaj uthana jaroori hai.

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  5. शुक्र है बिटिया को ज्यादा चोट नहीं आई ।
    मेट्रो के दरवाजे ऑटोमेटिक होते हैं । इसलिए सावधानी की ज़रुरत रहती है ।

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  6. शुक्र है आपकी बिटिया सही सलामत है.....

    विचारणीय मुद्दा।

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  7. ये बहुत हि सुन्दर सलाह है ...क्यूंकि सबसे पहले हम मानव हैं और अगर कोई मानसिक और शारीरक रूप से कमजोर है या यातायात में उतनी ज्यादा वृद्धि है तो सिर्फ जल्दबाजी के लिए या आसानी के लिए मानव जीवन से समझौता नही किया जाना चाहिए

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