बच्चों का गिड्डू

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  • फ़ज़ल इमाम मल्लिक
    संचार माध्यमों के फैलते जाल ने बच्चों से किताबें ही नहीं, उनका बचपन भी छीन लिया है। दादी-नानी की कहानियां कभी बच्चे चाव से सुनते थे और उन कहानियों में अपने नायकों को तलाशते थे। बच्चों की पत्रिकाओं ने इस संस्कार को न सिर्फ आगे बढ़ाया बल्कि कथा-कहानियों को विस्तार भी दिया। लेकिन धीरे-धीरे बाल-पत्रिकाएं बंद होती चली गईं और बच्चों का मिज़ाज भी बदलता गया। तकनीक और संचार माध्यमों ने बच्चों के लिए दूसरे दरवाजे खोले और टीवी-इंटरनेट से लेकर कार्टून फिल्मों में बच्चों ने अपने नायकों को तलाशने की कोशिश की। लेकिन संचार के नए माध्यमों ने बच्चओं से न सिर्फ यह कि उनका बचपन छीना बल्कि कथा-कहानियों का जो एक तिलस्मी संसार था उससे भी धीरे-धीरे वे दूर होते गए। जाहिर है कि तकनीक ने उन्हें एक नई और विशाल दुनिया से परिचय तो कराया लेकिन इसी तकनीक ने उन्हें जीवन के कई चमकीले-सुनहरे रंगों से दूर भी कर दिया। बच्चों से दूर होते बाल साहित्य के बावजूद आज भी अच्छा और बेहतर बाल साहित्य लिखा जा रहा है। यह उम्मीद भी है कि देर-सवेर तकनीक और संचार की उस चमकीली दुनिया से बच्चों का मोह भंग होगा और किताबें फिर उनकी साथी-संगी बनेंगी और नए नायकों की उंगली पकड़ कर बचपन की दहलीज को पार करेंगे। अनिल सैगल की चित्रकथा ‘गिड्डू’ को इसी सिलसिले की एक कड़ी माना जा सकता है।
    अनिल सैगल काफी समय से बच्चों के लिए काम कर रहे हैं और किताबों व फिल्मों के जरिए वे बच्चों को कहानियां सुनाने की कोशिश में जुटे हैं। करीब आठ साल पहले उन्होंने ‘गिड्डू’ पर एक एनीमेशन फिल्म बनाई थी। अब आठ साल बाद वे इसे किताब के शक्ल में लेकर सामने आए हैं। अपनी कहानी के लिए चित्र बनाने की ज़िम्मेदारी उन्होंने अनिल बोरबोरा को सौंपी, जिसे उन्होंने बकूबी निभाया है। गिड्डू बंसी गड़ड़िये का ढोल (जंगली कुत्ता) है जो उसकी भेड़ों की रखवाली करता है। गिड्डू अपनी भेड़ों को बेतरह प्यार करता है और खास कर झुंड का सबसे नटखट और शरारती भेड़ राजू को। यों तो अटारह भेड़ों की उस झुंड में सोनी, मोटी, बिंदू और हकलू भी हैं लेकिन राजू सबका दुलारा है। राजू अपनी शरारतों की वजह से कई बार परेशानी में भी फंसा लेकिन गिड्डू ने हर पार न सिर्फ ुसे बल्कि दूसरे भेड़ों को भी परेशानी से उबारा। कथा में प्रवाह है और चित्रों के ज़रिए उसे बख़ूबी दर्शाया गया है। बच्चों को यक़ीनन यह चित्रकथा पसंद आएगी क्योंकि इसमें रोमांच भी है और मटरगशती भी।
    गिड्डू (चित्रकथा), लेखक: अनिल सैगल, प्रकाशक: अरशी मीडिया, 116, आर.एस.सी-2, एस.वी.पी. नगर, अंधेरी (पश्चिम), मुंबई-400053, मूल्य: 180 रुपए

    1 टिप्पणी:

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