एक दरख्‍वास्‍त : हिन्दी साहित्य निकेतन , बिजनौर , उ प्र के नाम

सेवा में ,
माननीय गिरीराजशरण अग्रवाल जी
हिन्दी साहित्य निकेतन, बिजनौर , उत्तर प्रदेश


विषय:- 'हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास' नामक पुस्तक की प्राप्ति के संदर्भ में।

महोदय, 
विनम्र निवेदन है कि जब से नुक्कड़ पर 'हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास' नामक पुस्तक प्रकाशित करने घोषणा हुई थी, तब से मैने अपने लिए एक प्रति बुक कराई थी। 30 अप्रेल 2011 को हिन्दी भवन में पुस्तक का मूल्य भी जमा करा दिया था। लेकिन यह पुस्तक मेरे पास नहीं पहुंची। शिकायत किए जाने पर दुबारा पता मांगा गया , मैने पिछले वर्ष ही आपको 18 अक्‍तूबर को, रविन्द्र प्रभात जी को 25 नवंबर और अविनाश वाचस्‍पति जी को 23 दिसंबर को भी मेल किया था। पर अभी तक मुझे पुस्‍तक नहीं मिली है , मुझे मेरी प्रति प्रेषित करने की महती कृपा की जाए , इसके लिए आपकी आभारी रहूंगी।

प्रार्थी
संगीता पुरी
गत्यात्मक ज्योतिष

11 टिप्‍पणियां:

  1. ओह! अभी तक आपके पास नहीं पहुची है पुस्तक, गजब हो गया। फ़्लिप कार्ट से भी तीसरे दिन गाँव में पहुंच जाती है।

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  2. आपके इस पत्र से पुस्तक के बारे में जानकारी मिली ,धन्यवाद

    vikram7: हाय, टिप्पणी व्यथा बन गई ....

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  3. पिछले महीने मेरे पास भी इस आशय का फोन आया था और मैंने संगीता पुरी जी से पता लेकर हिन्‍दी साहित्‍य निकेतन के डॉ. गिरिराज शरण अग्रवाल जी की मेल पर मेल किया था। फोन बिजनौर कार्यालय से मिला था। लेकिन आज तक भी पुस्‍तक का न मिलना सचमुच में दुखद है।

    अनुभव कह रहा है कि प्रकाशक चाहे प्रतिष्ठित साहित्‍यकार हों या सिर्फ प्रकाशक - इनके व्‍यवहार में बदलाव इसलिए नहीं लाया जा सकता क्‍योंकि यह धन को ही बल मानते हैं जबकि इस मामले में तो धन भी दिया गया है। परंतु हो सकता है कि उस धन से अभी बलदोहन की प्रक्रिया जारी हो। उम्‍मीद करता हूं कि जब धन से पूरा बल निकाल लिया जाएगा, तब पुस्‍तक संगीता पुरी जी तक पहुंच ही जाएगी। इस शिकायत के प्रकाशन के बाद भी यदि सात दिनों तक पुस्‍तक न मिले तो संगीता जी मुझे अवश्‍य सूचित कीजिएगा। मैं अपने व्‍यय पर एक प्रति आपके पते पर निश्चित ही कूरियर करवा दूंगा क्‍योंकि मैं प्रतिष्ठित साहित्‍यकार और ख्‍यातनामा प्रकाशक होने का दंभ नहीं पालता हूं। मानवीय मूल्‍य और सरोकारों को हमें सदैव अपने जीवन में अपनाना चाहिए। पर कितने अपनाते हैं, इस पर न हमारा, न उनका वश ही चलता है जिन्हें अपने ऊपर इन्‍हें लागू करना चाहिए।

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  4. चिट्ठाचर्चाकारों से अनुरोध है कि इस पोस्‍ट को अपनी चर्चा में अवश्‍य स्‍थान देने का कष्‍ट करें।

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  5. जी तो ऐसा कर रहा है कि अपनी प्रति आपको भिजवा दूँ...

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  6. श्री जगदीप जी
    आपका मेल मिला
    संगीता जी का जो पता अविनाश जी ने बिजनौर भेजा था, उस पर उनकी पुस्तक दिनांक 2 जनवरी को पंजी डाक से भेजी गयी है, पंजी सं. है 1806
    अब बताइए कि क्या किया जाए
    मैं इन दिनों दक्षिण भारत में हूं
    यह बात अविनाश जी को पता है.
    आप एक बार उनका पता भेज दें
    पता नहीं क्यों, वह सीधे मुझे मेल क्यों नहीं करती हैं
    नुक्कड पर जो पत्र उन्होंने लिखा है, वह भी मेरे मेल पर नहीं भेजा हैण्
    किसी भी पत्रव्यवहार में अपना पता तो लिखना ही चाहिए
    गिरिराजशरण अग्रवाल
    सचिव

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  7. माननीय गिरीराजशरण अग्रवाल जी,
    वैसे तो 30 अप्रैल 2011 को पैसे जमा लेते वक्‍त ही मेरा पता नोट किया गया था .. पर पुस्‍तक नहीं मिलने की स्थिति में मैने 18 अक्‍तूबर 2011 को अपना पता आपके ईमेल पर भेजा था .. उसके बाद दो तीन बार मुझे अपना पता औरों को भी फारवर्ड करना पडा .. 23 दिसंबर को अविनाश वाचस्‍पति जी को भेजने के बाद बेसब्री से पुस्‍तक का इंतजार कर रही थी .. 5 जनवरी को भेजी गयी यह पुस्‍तक अभी अभी मुझे मिल गयी है .. इसलिए इस अध्‍याय को यहीं समाप्‍त समझा जाएं !!

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  8. सुखद अंत...नहीं सुखद शुरूआत... :)

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  9. सुखद शुरुआत
    सुखद आरम्भ
    सुखद प्रारम्भ
    पर किसका?

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