खुशियों की गिलहरी को यह कौन गुण्‍डा ले उड़ा


आप भी मानेंगे कि भला कोई शरीफ आदमी, किसी को भी गुण्‍डा क्‍यों कहेगा। शरीफ आदमी की तो इतनी भी हैसियत नहीं होती है और न उसमें हिम्‍मत होती है कि वह चोर को चोर कहने का जोखिम चोरी कर सके जबकि चोर के ऐसे तेज पांव होते हैं कि जरा सी आहट पर ही दौड़ अथवा चार  छह मंजिल से कूद लेते हैं। चोर और डर कर भागते पैर के भूत नजर नहीं आते, यह लोक में प्रचलित है जबकि भूत जो खुद ही दिखलाई नहीं देता है तो उसके पैर इत्‍यादि भला कैसे दिखाई देंगे, यह भी विचारणीय है। चोर जब कूदते हैं तो उनके पैर टूटने की घटनाएं सुनी जाती हैं, इससे यह अनुमान लगाया गया है कि उनके पांव काफी तेज लेकिन कमजोर होते हैं इसलिए टूटते भी रहते हैं।
डकैतों और गुण्‍डों के पैर अब घोड़े भी नहीं होते और वे अब कारों और मोटर साईकिलों में गतिमान रहकर अपने कारनामों को अंजाम देते हैं। उनके हाथों में हथियार होते हैं, न भी हों तो उनके हाथ ही हथियार होते हैं। वे जहां जहां से गुजर जाते हैं, वहां से शरीफ आदमी उनके आने से पहले गुजर चुके  गुण्‍डे से डर नहीं लग रहा हो तो अच्‍छी तरह मिलने के लिए यहां पर क्लिक कीजिए

गिलहरी की सच्‍चाई है

खुशी उसमें समाई है

दुख की तनिक नहीं

रोशनाई दी दिखाई है

इसलिए सबके मन को

भीतर तक भाई है

वैसे वह बहन होती है

गिलहरी होती है

नहीं होता है गिलहरा

 
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