ऐसे देश में भ्रष्टाचार कैसे खत्म हो सकता है , जहाँ किसी व्यक्ति का मान उसकी बेटी की शादी में खर्च किये गए धन से निर्धारित होता है | जहाँ समाज की नज़र में किसी एक मनुष्य की मनुष्यता बौनी हो जाती है दूसरे के आलीशान मकान के आगे | किसी घर के आगे खड़ी महँगी गाड़िया तय करती हैं कि उसे कितना सम्मान मिलेगा ? किसी परिवार की महिलाओं के झाले-झुमकों का वज़न तय करता है कि उन्हें मिलने वाले मान-सम्मान का माप-तौल क्या होगा ? पूरी पोस्ट यहाँ पढ़ें......
धन-बल को मिलने वाला मान है भ्रष्टाचार की जड़ ....!
Posted on by डॉ. मोनिका शर्मा in
Labels:
भ्रष्टाचार,
Dr Monika Sharma
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
हमरे संस्कारों में भौतिकता की जड़ें बहुत गहरी हैं ,विद्वानों ,संतों ने इसे अध्यात्म द्वारा नियंत्रित करने की बहुत कोशिश की है ,परन्तु असफल रहे हैं , एक तरफ राजा को भौतिकता का प्रतिरूप व अधिकारी स्वरुप नियुक्त किया गया ,उसके साईड- इफेक्ट भी हुए ,अन्य भी राजा की दौड़ में आये ,संघर्ष की जड़ आकार में आई /
जवाब देंहटाएंदेश -प्रदेश टूटे बने .भौतिकता ने शक्ति को क्रय करना शुरू किया , इस निहितार्थ संघों ने रूप लिया , राजनीती आई ,संबंधों ने विद्रूपता का स्वरुप लिया ,आज प्रत्येक व्यक्ति राजा -राजनीती के पनाह में है ,......संत और चोर वही,प्रकारांतर से प्रतिष्ठित है जो ,जो भौतिक स्वरुप से बृहद आकार में है ...../ यह तो होना ही था ......जब तक नैतिक,अध्यात्म का ज्ञान नहीं ...भ्रष्टाचार का समापन कहाँ .....मंजिल अभी दूर है .....विवेका नन्द , भगत सिंह ने शायद अभी गर्भ-नाल में आकार नहीं लिया है .... शुक्रिया जी /