सब कुछ वैसा ही
जैसा पहले हुआ करता था ।
बस मर गई है सम्वेदनाये
ठंडे पड्गये है अरमान
और बुझ से गये है चेहरे।
स्वार्थी लोगो के दोगले व्यक्तित्व
दुतरफा बाते ,पीठ मे धंसी कटारे
और मोथरी होती हमारी बाते
सब जेहन मे चित्र लिखित सा
ज्यो का त्यो अंकित है ।
जबकि करोडोपल गुजर चुके
टनो सांसो की आवाजाही
और सूरज भी निकला हर रोज ।
शिथिल और स्तम्भित् से हम
सब के साक्शी तो बने
पर कर ना पाये कुछ भी
बस यू ही मूढ से बैठे
दर्शक बने ताकते रहे
चित्रलिखित से बैठे रहे
और झेलते रहे अपने कहे
जाने वालेअपनो के
निर्मम प्रहारो को ।
बीना शर्मा
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सच्चाई को अभिव्यक्त करती अच्छी रचना
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