विकास जैसा मैंने समझा
विकास जैसा सबने चाहा
काश, सब वैसा मानें
अवैधता के वैधता की ओर
दौड़ते हुए धुंआधार कदम
धुंआ सार्वजनिक स्थलों पर
निकला है आपकी नाक-मुंह से
पानी की मोटरें
वैध हो गईं
देखते-देखते
पानी दे रही हैं
दे रही हैं जीवन
पानी की टंकियों को
वरना तो सब
उखाड़ ही फेंकते
खाली टंकियों को
चढ़ते देखा होगा आपने
टंकियों पर
नौटंकी करने के लिए
टंकी एक ही काफी होती है
बस्तियां, पगडंडियां
मकानों पर मंजिलें
मंजिलें सब जिलों में हैं
जिलों से सबके मन मिले हैं
मकानों में हैं दुकानें
दुकानों में रिहायश
न कभी वैध थी
न कभी वैध होगी
पर रहने वाले
वहीं सोयेंगे रात भर
पटरी पर दुकान होते हुए
सोना जायज नहीं है
किसी भी तरह से।
दुकानों का फुटपाथ पर होता विस्तार
अवैध होते हुए भी वैध है
अगर अवैधता न परिवर्तित हो
उसका स्वरूप न हो वैध
फिर विकास कैसे होगा
विकास के लिए वैधता का होना
निहायत जरूरी है।
जेब काटना
मोबाइल छीनना
एटीएम लूटना
चैन खींचना
सभी अवैध हैं
इसे अंजाम पर पहुंचाने वाला
पकड़ में आए
न पकड़ में आए
एफ आई आर नहीं होती है दर्ज
इसका दर्ज न होना
एक लाइलाज मर्ज है
इंसानियत पर कर्ज है
कर्ज ही रहेगा
चुकाए कौन
सब हैं मौन।
अवैध को वैध बनाने का खेल
खेल जो कॉमनवेल्थ नहीं है
इसमें भी घोटाले कॉमन हैं
नेताओं का इसी में लगता मन है
लूट की तो
लोकतंत्र में छूट है।
वाहन चलाते समय
मोबाइल पर बात करना
गैर कानूनी है
कानून तो सिर्फ
पैसों से खरीदा जाता है
बात करने वाले का सिर्फ
चालान ही किया जाता है
यह भी एक मर्ज है
विकास के नाम पर कर्ज है
सब जगह यह भी दर्ज है
मेरी तो इतनी सी अर्ज है।
यह ज्ञान की अज्ञान वाली पीठ है
देख लो आप कितनी घोर ढीठ है
विकास है या विकास के नाम पर
नैतिकता, संस्कृति, मूल्यों
का किया जा रहा है सत्यानाश
फिर भी कायम है हमारा विश्वास
यही सब विकास है
ऐसा सबका विश्वास है।
@नैतिकता, संस्कृति, मूल्यों
जवाब देंहटाएंका किया जा रहा है सत्यानाश
फिर भी कायम है हमारा विश्वास
यही सब विकास है
ऐसा सबका विश्वास है।
आज के हालात पर गहराई से सोचने -विचारने को विवश करती कविता . आभार .
कहाँ से शुरू,कहाँ होगा खतम ये विकास (कृपया विनाश पढ़ा जाये,अविनाश नहीं )
जवाब देंहटाएंकुछ नी हो सक्ता.
जवाब देंहटाएंनेताओं का इसी में लगता मन है
जवाब देंहटाएंलूट की तो
लोकतंत्र में छूट है।
वाहन चलाते समय
मोबाइल पर बात करना
गैर कानूनी है
कानून तो सिर्फ
पैसों से खरीदा जाता है
सार्थक और सामयिक प्रस्तुति, आभार.