बड़ें फैसलें लेने में जल्दबाजी ठीक नहीं

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  • राजीव गुप्ता
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  • राजीव गुप्ता लेखक 

    यूपीए - 2  इस समय अपने कार्यकाल के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है !  सरकार जल्दबाजी और अपने गलत फैसलों के कारण संसद में रोज नए - नए मुद्दे लाकर समूचे विपक्ष समेत अपने सहयोगियों को भी अचंभित कर उन्हें विरोध करने के लिए मजबूर कर रही है ! इस बार के शीतकालीन संसदीय सत्र  में महंगाई और तेलंगाना के मसले में अभी हंगामा थमा भी नहीं था कि 24 नवम्बर 2011 को खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश के सबंध में सरकार ने फैसला लेकर अपनी मुसीबत और बढ़ा ली जिसके चलते सोमवार को भी एक बार फिर से दोनों सदन दिन भर के लिए स्थगित हो गए ! गौरतलब है कि है कि मल्टी ब्रांड में सरकार ने 51  प्रतिशत और सिंगल ब्रांड में सरकार ने 100 प्रतिशत का विदेशी पूंजी निवेश स्वीकार कर लिया है जिसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर पड़ना तय है !  महंगाई भ्रष्टाचार , और कालेधन पर चौतरफा घिरी सरकार ने अपनी नाकामियों को छुपाने एवं अपनी इमेज सुधारने के लिए जो तुरुप का एक्का चला वही उसके गले की फांस बन गया ! 

    जहां महंगाई की मार से आम जनता त्राहि - त्राहि कर रही हैऐसे में महंगाई से निपटने के लिए सरकार सिर्फ जनता को आश्वासन देती है परन्तु आम आदमी जो छोटे - मोटे व्यापार से अभी टक अपना परिवार पाल रहा था उसको बेरोजगार करने का सरकार ने अपने इस कृत्य से पुख्ता इंतजाम कर लिया है ! संसदीय समिति की सिफारिशों को दरकिनार करते हुए सरकार द्वारा विदेशी कंपनियों को खुदरा क्षेत्र में अनुमति देने का निर्णय " कैबिनेट"  में क्यों लिया गया जबकि  शीतकालीन सत्र अभी चल रहा है ! ज्ञातव्य है कि जुलाई 2010 को भारत सरकार ने एक चर्चा पत्र जारी कर अपनी मंशा जाहिर की थी जिसमे सरकार  ने संसदीय समिति के विरोध को भी स्वीकार किया था ! मामला अब संसद से सड़क तक जा पंहुचा हैं जो कि होना लाजिमी भी था क्योंकि खुदरे व्यापार से सीधे आम जनता का सरोकार  है ! सरकार का तर्क है कि उसके इस कदम से करोडो लोगों को रोजगार मिलेगा जो कि सिर्फ बरगलाने वाला तर्क - मात्र  से ज्यादा कुछ  नहीं है क्योंकि उसके इस कदम से जितने लोगो को रोजगार मिलेगा उससे कई गुना ज्यादा लोगो की जैसे रेहडी-पटरी लगाने वाले,  फ़ल-सब्जी बेचने वालेछोटे दुकानदारइत्यादि प्रकार के मध्यम और छोटे व्यापारियों की रोजी-रोटी कृपया पूरा पढने के लिए क्लिक करें 
     
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