पिंजरे में सिर्फ
बुलबुलें ही कैद
नहीं की जातीं
तोते भी किए
जाते हैं बंद
तोते यूं तो
काटते नहीं है
बंद हों पिंजरे में
और दिखाओ ऊंगली
तो काट लेते हैं।
कबूतर पहले थे
संदेशवाहक देश से विदेश
विदेश से प्रदेश
अब आदमियों की
तस्करी के लिए
मुहावरों में आते हैं काम
कबूतरबाजी है जिसका नाम।
बाजी पर सिर्फ
नहीं है बाज का ही हक
कार्य का भी नाम है
कारनामा कहें जिसे
चाहे कहें करतूत
बने ना कोई बुत।
मैना रखने से नाम
नहीं बच पाती है
मै ना
कितना ही कहे
मारी जाती है
है ना।
सबसे पहले कैद
वही किया जाता है
जो कहता है
मैं पाक, मैं साफ
मैंने नहीं किया घोटाला
पर टाला भी तो नहीं
मौन रहने से
नहीं बचा जा सकता।
खतरे में
गौरेया है
सोन चिरैया है
सबसे अधिक
आजाद भी है
कैद में है
सिग्नल प्रदूषण के
बनी शिकार है
तकनीकी व्यभिचार है
इंसान लाचार है
वाई फाई बनाती है
हाई फाई
कैसे छोड़ दे
खेल यह तरंगों का है
रंगहीन है
रंगविहीन है
फिर भी संगीन है
इंसान ही गमगीन है।
वैचारिक दंगों का
अपाहिज अंगों का
अपाहिज कर रहा है
मन को
मानस को
नस नस को
सन्नाहट भी नहीं
होती है महसूस
आहट का नहीं
होता है अहसास
अजीब है रास
रस्साकसी गर्दन फंसी।
गधे तो खाते रहेंगे घास
बढ़ाते रहेंगे बुद्धि
कहलाते रहेंगे मूर्ख
साधते रहेंगे स्वयं को।
साधना साध धन घना है
धन को साधना
बांधना चाहते हैं
इसे साधने के लिए
क्या इंसान जन्मा है ?
सही लिखा है जो अपने को जितना पाक साफ बताता है वही कैद किया जाता है |अच्छी रचना के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
सत्य को उजागर करती सधी हुई रचना......
जवाब देंहटाएंसादर बधाई...
आपकी कविता भ्रष्टाचार की तरह हर जगह घुसपैठ करती है,
जवाब देंहटाएंपढ़ने में हमारा इम्तहान लेती है !!
आक्रोश को दर्शाती बेहतरीन शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिखे हैं सर!
जवाब देंहटाएंसादर
behatreen
जवाब देंहटाएंVery good
जवाब देंहटाएंWatch out https://youtu.be/hc0JotnIcF4
Very good
जवाब देंहटाएंWatch out https://youtu.be/hc0JotnIcF4