अनूप शुक्ल की वज़ह से डा. किसलय के साथ उनकी पिछली१७ फ़रवरी २०११ को हुई थी तब मैने अपनी पोस्ट में जो लिखा था उसमें ये था " ज्ञानरंजन जी के घर से लौट कर बेहद खुश हूं. परकुछ दर्द अवश्य अपने सीने में बटोर के लाया हूं. नींद की गोलीखा चुका पर नींद न आयेगी मैं जानता हूं. खुद को जान चुकाहूं.कि उस दर्द को लिखे बिना निगोड़ी नींद न आएगी. एककहानी उचक उचक के मुझसे बार बार कह रही है :- सोने सेपहले जगा दो सबको. कोई गहरी नींद न सोये सबका गहरी नींदलेना ज़रूरी नहीं. सोयें भी तो जागे-जागे. मुझे मालूम है कि कईऐसे भी हैं जो जागे तो होंगें पर सोये-सोये. जाने क्यों ऐसा होताहै
ज्ञानरंजन जी ने मार्क्स को कोट किया था चर्चा में विचारधाराएं अलग अलग हों फ़िर भी साथ हो तो कोई बात बने. इस तथ्य से अभिग्य मैं एक कविता लिख तो चुका था इसीबात को लेकर ये अलग बात है कि वो देखने में प्रेम कविता नज़रआती है :- आगे पढ़ने "“ज्ञानरंजन जी से मिलकर…!!”" पर क्लिक कीजिये" कुछ ज़रूरी जो शेष रहा वो ये रहा ....
ज्ञानरंजन के मायने पहल अच्छा लिखने की सच्चा लिखने की एक अच्छे लेखक जो अंतर्जाल को ज़रूरी मानते तो हैं किंतु उनकी च्वाइस है क़िताबें. किसी से बायस नहीं हैं ज्ञानरंजन तभी तो ज्ञानरंजन है.. एक बार मेरी अनूप शुक्ला जी डा०विजय तिवारी के साथ उनसे हुई एक मुलाक़ात में उनका गुस्सा राडिया वाले मामले को लेकर लेकर फ़ूटा तो था बिखरा नहीं साफ़ तौर पर उन्हौने समझौतों की हद-हुदूद की ओर इशारा कर दिया था .. गुस्सा किस पर था आप समझ सकते हैं ..ज्ञानरंजन कभी टूटते नहीं बल्कि असहमति की स्थिति में इरादा दृढ़ और अपनी गति तेज़ कर देते हैं.पूरे ७५बरस के हो जाएंगे २१ नवम्बर २०११ को इस अवसर पर नई-दुनियां अखबार का एक पूरा पन्ना सजाया है .
पूरा आलेख बांचिये मिसफ़िट पर "ज्ञानरंजन, 101, रामनगर, अधारताल, जबलपुर."
अच्छी मुलाक़ात :-)
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