नोबल पुरस्‍कार चाहिए तो चले आइए

नेता देश से खेलते समय, कब कुर्सी से खेल जाते हैं, भनक भी नहीं लगती कि वे करेंसी नोटों से भी खेल रहे होते हैं, और उनके रंग को काले से गोरा बनाने के खेल में जुगाड़ाधीन रहते हैं। वोटर और जनता की भावनाओं से खेलना तो उनकी परमानेंट खेल मोड में फीड रहता है। किसी को अहसास भी नहीं होता और वे खूब तेजी से खेलकर अपनी विशिष्‍टता से सबको सम्‍मोहित कर लेते हैं। खेलने वाले जो मिलावट का खेल खेलते हैं, भला आप उन्‍हें खिलाड़ी कैसे नहीं मानेंगे, फिर नकली करेंसी का प्रकाशन, उनका प्रसारण, बाद में सूचना का मिलना – यह सब ऐसा ही है जैसे सूचना और प्रसारण का मंत्र जपा जा रहा हो। मिलावटन का खेल खेलने वाले सभी आयामों को ध्‍यान में रखकर उसमें रत रहते हैं। ... पूरा पढ़ने के लिए मुझे क्लिक कीजिए। 
 
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