हाकी की तल्खियां बन गई हैं सुर्खियां

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  • अविनाश वाचस्पति
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  • तुलना करने चले हैं क्रिकेट से। जिसमें बाल फेंकने के लिए भी अलग से माहिर खिलाड़ी होते हैं जिन्‍हें बालर कहा जाता है। हाकी में तो यूं ही बाल को लुढ़का भर दिया जाता है, उसके बाद बाल के पीछे अपनी अपनी हाकी लेकर लुढ़कते फिरो सब और सिर फुटव्‍वल करते रहो। आपस में भी उलझ-उलझा कर गिरो। मतलब हंसी का भरपूर मसाला, कम हो जाए तो हार जाओ, हार कर भी दुनिया को खूब हंसाओ। उसी ठहाके लगाती दुनिया के बाशिंदों ने खुशी से पच्‍चीस हजार देने चाहे तो तुम्‍हें न भाए, कैसे हो गए हाकी वाले इतने खाए अघाए। क्रिकेट में तो बाल पकड़ने के लिए हाथों का उपयोग होता है, हाकी खेलते समय बाल में हाथ लगाओगे तो हार जाओगे, जब यह जानते हो, फिर क्‍यों खुद को क्रिकेट के बराबर चिरकुट मानते हो। वहां एक बाल के पीछे सब बैट लेकर तो नहीं भागते हैं तुम्‍हारी तरह, बेशर्मों के माफिक, सब एक बाल के पीछे अपनी अपनी हाकियां लेकर दौड़ पड़ते हो, फिर कहते हो हमें भी क्रिकेट के बराबर नोट मिलने चाहिएं। नोट कर लो, ऐसा कभी नहीं होगा। जितना मिल गया, उतने में सब्र कर लो, संतोष धन का कोई मुकाबला नहीं है। एक बार पाकिस्‍तान को क्‍या हरा दिया, खुद को फन्‍ने खां समझ बैठे। इस बार तो तुम्‍हारी जिद को आसमान दे दिया है, अगली बार जमीन भी नहीं मिलेगी।

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