अवाम

Posted on
  • by
  • http://sanadpatrika.blogspot.com/
  • in
  • Labels:



  • फ़ज़ल इमाम मल्लिक



    सत्ता के शीर्ष पर जब वह पहुंचा तो हैरान रह गया...क़दम-क़दम पर बेईमानी...भ्रष्टाचार....।
    आदर्श और मूल्य बस अब सिर्फ किताबों में सिमट कर रह गए हैं...उसे पहले डर भी लगा। किस-किस के खिलाफ़ वह हल्ला बोले....ऊपर से नीचे तक सब एक ही रंग में रंगे थे....लेकिन फिर उसने हिम्मत जुटाई...धीरे-धीरे सत्ता पर पकड़ बनाई। लोगों की आंखों से आंसू पोंछने के लिए वह लगातार कोशिश करता रहा....भ्रष्ट और बेईमानों की परेशानी बढ़ी....सत्ता में उसके सहयोगी उसके ख़िलाफ़ होने लगे तो पार्टी में उसके कामकाज के तरीक़े को लेकर फुसपुसाहट शुरू हो गई। लेकिन इन सबसे बेपरवाह वह लोगों के पक्ष में खड़ा होना उसने नहीं छोड़ा।
    धीरे-धीरे विरोध बढ़ता गया। पार्टी और उसके सहयोगी उसे सत्ता से बेदखल करने के लिए लामबंद हुए...और फिर सबने एक सुर में उसे हटाने की मांग करने लगे....।
    सारे विरोध के बावजूद वह अब भी सत्ता के शिखर पर बैठा हुआ है.....अवाम उसके साथ हैं....।

    चुनाव

    सत्ता के लिए पार्टी चाहिए और पार्टी चलाने के लिए पैसा...।
    उसने पहले पार्टी बनाई....फिर पैसा और उसके बाद सत्ता हासिल की.....।
    सब कुछ ठीक चल रहा था....सत्ता उसके पास थी और पैसा उस पर बरस रहा था....पैसा अब उसकी मजबूरी नहीं कमज़ोरी बन गई थी.....इस कमज़ोरी की वजह से उसकी परेशानी बढ़ती गई....उसके अपने साथी-संगी उसका साथ छोड़ने लगे....और एक दिन ऐसा आया कि उसे पैसा और लोगों में से किसी एक को चुनना था.....
    उसने पैसे को चुना....अगले दिन लोगों ने उसे सत्ता से बेदख़ल कर दिया....।

    2 टिप्‍पणियां:

    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
    Copyright (c) 2009-2012. नुक्कड़ All Rights Reserved | Managed by: Shah Nawaz