नि:संदेह देह देह ही है देह भी नहीं नि:संदेह (कविता)

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  • अविनाश वाचस्पति
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  • देह खिलाती है गुल
    बत्‍ती करती है गुल
    विवेक की
    मन की
    जला देती है
    बत्‍ती तन की।
    देह सिर्फ देह ही होती है
    होती भी है देह
    और नहीं भी होती है देह।
    देह धरती है दिमाग भी
    देह में बसती है आग भी
    देह कालियानाग भी
    देह एक फुंकार भी
    देह है फुफकार भी।
    देह दावानल है
    देह दांव है
    देह छांव है
    देह ठांव है
    देह गांव है।

    देह का दहकना
    दहलाता है
    देह का बहकना
    बहलाता नहीं
    बिखेरता है
    जो सिमट पाता नहीं।
    देह दरकती भी है
    देह कसकती भी है
    देह रपटती भी है
    देह सरकती भी है
    फिसलती भी है देह।
    देह दया भी है
    देह डाह भी है
    देह राह भी है
    और करती है राहें बंद
    गति भी करती मंद।

    टहलती देह है
    टहलाती भी देह
    दमकती है देह
    दमकाती भी देह
    सहती है देह
    सहलाती भी देह।


    मुस्‍काती है
    बरसाती है मेह
    वो भी है देह
    लुट लुट जाती है
    लूट ली जाती है
    देह ही कहलाती है।
    देह दंश भी है
    देह अंश भी है
    देह कंस भी है
    देह वंश भी है
    देह सब है
    देह कुछ भी नहीं।
    देह के द्वार
    करते हैं वार
    उतारती खुमार
    चढ़ाती बुखार
    देह से पार
    देह भी नहीं
    देह कुछ नहीं
    नि:संदेह।

    10 टिप्‍पणियां:

    1. गुरुदेव
      प्रणाम
      आज आपकी कविता को पढकर सिर्फ एक इ बाव मन में आये है वो है कि आपको और आपकी लेखनी को सलाम करू.
      देह पर इससे बेहतर कविता और अभिव्यक्ति मैंने पढ़ा नहीं अब तक .

      आप यूँ ही लिखते रहे ,

      विजय

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    2. देह पर ही सब निसार . अति सुन्दर.

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    3. वाह आज तो आपने पूरा देह पुराण लिख दिया।

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    4. sara chakkar hi is deh ka hai...
      saaree maya isimei samai hai...
      badi ghanchakkar hai ye deh...
      aur aap to hai hi maya ka vivran likhne mei ustaad...
      waah...

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    5. देह पर निःसंदेह अच्छी कविता . आभार .देह वाकई मूल्यवान है. अपनी देह का भी ख्याल रखें , चौबीसों घंटे ब्लॉगिंग देह के लिए निःसंदेह नुकसानदायक हो सकती है.

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    6. देह मिट्टी है फिर भी सोना है जिसे आपने बेहद बारीकी से विस्तार दे दिया.. लाजवाब

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    7. अन्नाभाई कहीं देह पर प्राकृतिक चिकित्सा के अत्याचारों के परिणाम स्वरुप तो नहीं यह कविता उपजी?

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    8. लगता है सदेह ही स्वर्ग जाने का विचार है.....इस देह-महिमा के आगे तो देव-महिमा भी फीकी पड़ गई !

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    9. प्रथम बार आपके ब्लॉग पर आया तो विस्मित रह गया......क्या खूब लिखते हैं आप.......आपसे संपर्क का आकांक्षी हूँ ....

      My e-mail id is manojobc@rediffmail.com

      एक खाली मेल भी भेज देंगे तो मैं संपर्क स्थापित कर लूँगा.....

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    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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