दिल्ली में नावों का भविष्य सुनहरा हो गया, ऐसा लगता है। यह पिछले सप्ताह की मूसलाधार बारिश ने बेपूछे बतला दिया है। दिल्ली जुटी हुई थी काला धन वापिस लाने में और लौट आए हैं काले मेघा। सोच रहा हूं कि फाइनल ही कर लिया जाए कि नाव बनाने व किराए पर देने का धंधा शुरू कर लूं, कुछ काली कमाई के रास्ते भी ओपन होंगे। किसी को इसमें हैरानी भी नहीं होगी, इससे तो सैकड़ों की परेशानी दूर होगी। अगर दूर की न सोची जाए तो असफलताएं पप्पी ले लेती हैं और देर में सोची जाए तो चिडि़याएं सारे खेत की जफ्फी ले लेती हैं। वैसे आजकल चिडि़याओं का अस्तित्व ही मोबाइल संकेतों के कारण खतरे में है और इंसान पर्यावरण के नुकसान के इन संकेतों से अज्ञानी बनकर खूब खुश है। वे लुप्त होती जा रही हैं, खेत फिर भी सुरक्षित नहीं हैं। वे चुग लिए जाते हैं, मुझे अहसास हो रहा है कि जरूर नेता ही चुग लेते होंगे, जिनके लिए बदनाम वे चिडि़याएं हो रही हैं। सड़कों पर भरा पानी चीख चिल्लाकर कह रहा है कि सूनामी आई है, संदेशा लाई है कि नाव बना लो, उसे किराए पर चला लो, पर पानी की यह चिल्लाहट नगर निगम न सुन ले, वरना तो कर वसूलने के लिए कमर और कर दोनों कस लेगा। कहीं देर न हो जाए ....। बहरहाल, खेत तो तैयार हैं, बस नाव बनाने और किराए पर चलाने की देर है। पर इस देरी को चुपचाप सन्नाटे के साथ खत्म करना है। अगर किसी नेता को इस फार्मूले की भनक भी पड़ गई तो घोटाला-घपला होकर ही रहेगा क्योंकि जितने तिहाड़ में हैं, उससे कई गुना तो बाहर संसद में हैं।
पानी जरूर गीला है पर जब सड़कों पर उतरता है जो जम जाता है और उसके जमने से जाम लग जाता है। फिर उस गीले बारिश के पानी में कारें, मोटरसाईकिलें, बस और आदमी सब जम जाते हैं। ऐसा लगता है कि वक्त भी जम गया है पर वो जमा हुआ वक्त बहुत तेजी से पिघलता जाता है और किसी के काबू में नहीं रह पाता। बारिशों का बेकाबू होना, बतला रहा है कि सिर्फ सरकारी बाबू ही काबू में नहीं आता है, यह सब मौके पर निर्भर करता है। कौन जाने, कब किसे मौका मिल जाए ?
इस बार जो भी हुआ है बहुत भयानक हुआ है क्योंकि बरसात के पानी ने राजधानी की सड़कों और जीवन को बंधक बना लिया। यह क्या किसी आतंकवादी गतिविधि से कम खतरनाक है। अस्पताल जाने वाले अस्पताल न जा सके, आफिस जाने वाले, आफिस आफिस खेलने से महरूम रह गए, दुकानदारों को अपना माल किसी भी रेट में बेचने का मौका न मिल सका, मतलब सब कुछ खर्च हुआ, पेट्रोल भी जला, समय भी सुलगा, पर धन कमाने का मौका हाथ न लगा। जिनके हाथ न लगा, वे निराश हैं पर उन्हें नाव में अपना भविष्य देख कर तुरंत सक्रिय हो जाना चाहिए।
बरसात के पानी ने राजधानी की सड़कों और जीवन को बंधक बना लिया।
जवाब देंहटाएंमास्टर न बन पाने के बाद क्या नाविक बनने का इरादा है ? कहो तो दू-चार ठो नाव भेज दें,कामन वेल्थ वाली !
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