क्यों जी रहा हूं मैं
किसके लिए जी रहा हूं मैं
अपने लिए तो नहीं
अपने दर्द के लिए
फिर क्यों जिऊं
खुदगर्जी जिला रही है
दर्द ही पिला रही है।
बहुत खुदगर्ज हूं मैं
अपना दर्द किसी को देता नहीं हूं
सच्चाई यह नहीं है
सच तो यह है कि
दर्द कोई लेता ही नहीं है
ले भी क्यों
सबके पास अपने अपने दर्द हैं
सबको पसंद अपने अपने दर्द हैं
दर्द हैं सबके पास
सब ही तो मर्द हैं ।
खुशियां किसी की लेता नहीं हूं
फिर भी जीता यहीं हूं
सब कुछ हार कर।
चलूं मौत के पहाड़ पर
वहां जहां चिल्ला रहा है जीवन
फिर भी पसरा है सूनापन
नहीं अपनापन
सब बेगानापन
बेसंगीत है
यह जीवन भी भला
कोई गीत है ?
किसके लिए जी रहा हूं मैं
अपने लिए तो नहीं
अपने दर्द के लिए
फिर क्यों जिऊं
खुदगर्जी जिला रही है
दर्द ही पिला रही है।
बहुत खुदगर्ज हूं मैं
अपना दर्द किसी को देता नहीं हूं
सच्चाई यह नहीं है
सच तो यह है कि
दर्द कोई लेता ही नहीं है
ले भी क्यों
सबके पास अपने अपने दर्द हैं
सबको पसंद अपने अपने दर्द हैं
दर्द हैं सबके पास
सब ही तो मर्द हैं ।
खुशियां किसी की लेता नहीं हूं
फिर भी जीता यहीं हूं
सब कुछ हार कर।
चलूं मौत के पहाड़ पर
वहां जहां चिल्ला रहा है जीवन
फिर भी पसरा है सूनापन
नहीं अपनापन
सब बेगानापन
बेसंगीत है
यह जीवन भी भला
कोई गीत है ?
सबके पास अपने अपने दर्द हैं
जवाब देंहटाएंसबको पसंद अपने अपने दर्द हैं
सुन्दर रचना आपकी, नए नए आयाम |
देत बधाई प्रेम से, प्रस्तुति हो अविराम ||
वहां जहां चिल्ला रहा है जीवन
जवाब देंहटाएंफिर भी पसरा है सूनापन
नहीं अपनापन
सब बेगानापन
बेसंगीत है
यह जीवन भी भला
कोई गीत है ?
वाह भी और आह भी ।