हि ना शी ना मौसम सावनिया : एक गोपनीय पत्र

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  • अविनाश वाचस्पति
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  • हिना He ना she है। मैं ही नहीं, सब जानते हैं पर फिर भी अजीब सी बेख्‍याली में हैं। ऐसे लगता है मानो मालूम ही नहीं है। पूरी तरह पहचानते हैं पर वो कमाल ऐसा कर गई जो दिग्‍गज ही नहीं कर पाए, हि ना कर गई। इतना प्‍यार पाकिस्‍तान के प्रति उमड़ा कि उमड़ता ही चला जा रहा है। अब भी हिना की ही चर्चा है। हिना पर ही व्‍यंग्‍य की तरंग और हिना पर ही रंगीन कविताएं। जो रचती रही है हथेलियों पर, उसने दिल पर पकड़ जमा ली है। ऐसी रची है कि वापसी के बाद भी सजी है। अभी भी फिजाओं में उसी की चर्चा है। मानो गई नहीं है। पलकों के कोरों में छिपी है। शरीर ही तो गया है, वही आया था। पर सुगंध उसकी सबके ... पूरा पढ़ने और प्रतिक्रिया अथवा वोट देने के लिए क्लिक कीजिए
     
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