भीड़ को भेड़ बनते हुए हम सब सदा से देखते रहे हैं और आज भी यही स्थिति है लेकिन किसी ने कल्पना तक न की होगी कि तथाकथित भेडि़ये किस प्रकार भीड़ को भेडि़या बनाने में जुटे हुए हैं। इनकी दिव्यता को आप रोजाना विभिन्न चैनलों पर महसूस करते हैं। उनकी समझ पर संदेह नहीं किया जाता और यही संदेह न करना ही इंसान के विश्वास का बुरी तरह कचूमर निकाल देता है। नतीजा चैनलों की सनसनी, घमासान, वारदात निजी जिंदगी में टीआरपी की सौगात के तौर पर जहरीली जड़ें जमा चुके हैं और इनके प्रणेता इन पर अमल कर रहे हैं।
पिछले महीने के अंतिम दिवस पर राजधानी दिल्ली में एक भव्य आयोजन में देश-विदेश के हिन्दी ब्लॉगरों का सम्मान किया गया। इस विधा की तेजी से शिखर की ओर कुलांचे मारने की शक्ति से तथाकथित ताकतों को अपना अस्तित्व धुंधलाता और धुंधियाता लगा, उनके गले में यह आयोजन खराश पैदा कर गया। फिर उन्होंने पूरी ताकत से उस खुशी के माहौल में तेजाबी भंग मिलाने की भरपूर कोशिश की। खुशी-खुशी अपना सम्मान स्वीकारने वाले ब्लॉगर ने बाद में यह साबित करने का प्रयास किया कि उन्हें गुमराह किया गया है।
इस तरह हिन्दी ब्लॉग जगत को संवेदनात्मक तरीके से ब्लैकमेल करने की कोशिश हुई। सफल न होने पर उसे मज़ाक कहा गया, यह हास्यास्पदता की मिसाल है। जब आप अपने फैसले खुद नहीं ले पायेंगे, तब तक इसी तरह इस्तेमाल होते रहेंगे। उन्होंने अपने सारे तीर विष में जला जलाकर उन शुभचिंतकों पर छोड़े, जो उनको मन से विश कर रहे थे, समाज ऐसी घटनाओं को सदा निंदनीय मानता है।
जाहिर होता है कि हमारा समाज में जो चेहरा है, वो हमारे आकाओं के कहने से रंग रूप बदलता है। हमारे आका ही हमारी रोजी-रोटी सलामत रखते हैं। हमारी प्रवृतियां उन्हीं की भेंट चढ़ जाती हैं। पापी पेट जो न कराए थोड़ा है, प्रत्येक हिन्दी ब्लॉगर कल्पना का घोड़ा नहीं है, अब कतिपय ब्लॉगर अपनी कल्पनाओं को रंगा सियार बनाने पर आमादा हो चुके हैं। वो खुश हैं लेकिन अपने शरीर और मन पर जहां भी अपनी ऊंगलियों से जांच करेंगे तो पायेंगे कि उनका शरीर चिपचिपा गया है। मिठास जब कुटिल प्रवृतियों से मिल-पिघल जाती है, तो सब पाप कर्म पुण्य दिखलाई देने लगते हैं। मिठास जहरीली हो जाती है। जिससे आनंद तो मिठास का ही मिलता है परंतु मन कलुषित हो चुका होता है। मन की यही कलुषता भेडि़या धसान है।
अपने को सब शिष्ट जाहिर करते हैं जबकि वे अपनी दुष्टता की पुष्टता का सार्वजनिक प्रदर्शन कर रहे होते हैं। इंसान वही है जो गलती करे और स्वीकार ले। न कि अपनी गलती को सामने वाले की गलती साबित करके अपना कद ऊंचा करने की नाकामयाब कोशिश करे। किसी के कार्य में बाधा डालकर जो नहीं अघाते हैं, उन्हें ही ऐसे पापकर्म सुहाते हैं और वे ही पुण्य कहाते हैं।
बहुत दुख हुआ अविनाश जी यह सब देखकर। ऐसा नहीं होना चाहिये था। अब हो तो गया है। मगर हुआ गलत है। पर यह गलत क्यों हुआ आखिर। होना नहीं चाहिये था ना पर फिर भी हुआ। और गलत हुआ जो कि दरअसल होना ही नहीं चाहिये था।
जवाब देंहटाएंअरे यार अब हटाइये भी और अगले सम्मेलन की तैयारी कीजिये ना।
ही ही।