सोनिया गांधी के नाम एक बिहारी की चिट्ठी

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  • रजनीश
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  • आदरणीया सोनिया गाँधी जी,
    सादर अभिवादन,

    मैं एक जागरूक नागरिक की हैसियत से आपको यह मेल भेज रहा हूँ. दरअसल बिहार के राज्यपाल माननीय देवानंद कोंवर जी भ्रष्टाचार की सारी हदों को पार कर चुके हैं. इनसे पहले बिहार में इतने भ्रष्ट राज्यपाल आदरणीय बूटा सिंह को छोड़कर दूसरे कोई नहीं आए. बहुत दिनों बाद या यूँ कहें पहली बार बिहार को नीतीश कुमार जैसा दृढ़ इच्छाशक्तिसंपन्न, संवेदनशील और विकासोन्मुख एवं सकारात्मक विचार संपन्न मुख्यमंत्री नसीब हुआ है. उनके कार्यों से लगता है वे बिहार को आधुनिक और विकसित बनाने हेतु दिन-रात स्वप्न देखते हैं और उस स्वप्न को सत्य में बदलने हेतु प्रयत्नशील रहते हैं. ऐसी परिस्थिति में माननीय राज्यपाल उच्च शिक्षा के क्षेत्र के अवसान हेतु दिनानुदिन नए-नए कीर्तिमान स्थापित करने में मशगुल हैं. सबसे पहले तो वे विश्वविद्यालयों के कुलपति की नियुक्ति में बिना राज्य सरकार से विचार-विमर्श किए अवैध तरीके अपनाए, फिर उपकुलपति की नियुक्ति का तरीका भी वही रहा. विश्वविद्यालयों के कुलपति को शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान हेतु चर्चित होना चाहिए था, पर, दुर्भाग्य से जयप्रकाश विश्वविद्यालय के कुलपति श्री दिनेश प्रसाद सिंह बिहार की प्रसिद्द गायिका देवी के साथ छेड़छाड़ हेतु चर्चित हुए. हद तो तब हो गयी जब राज्य सरकार के पुरजोर आग्रह के बावजूद राज्यपाल ने उन्हें कुलपति जैसे सम्मानित पद से नहीं हटाया. मेरे पास प्रमाण तो नहीं हैं पर कहनेवालों की मानें तो कुलपति की नियुक्ति में राज्यपाल द्वारा पचास लाख से एक करोड़ रूपए तक वसूले गए हैं, उपकुलपति हेतु पन्द्रह लाख से पचीस लाख रूपए, यहाँ तक कि कालेजों के प्राचार्य की नियुक्ति में कुलपतियों द्वारा दस से लेकर पैंतीस लाख रूपए तक वसूले गए जिसमें निर्विवाद रूप से महामहिम की भी हिस्सेदारी रहती थी. अन्ना हजारे को प्रेषित पत्रोत्तर में आपने भ्रष्टाचार के विरुद्ध हर आन्दोलन को सहयोग एवं समर्थन देने का आश्वासन दिया है जो काबिलेतारीफ है. मुझे भ्रष्टाचार के विरुद्ध आपकी तत्परता को देखते हुए पूरी उम्मीद है कि मेरे मेल पर गंभीरतापूर्वक विचार करते हुए वर्तमान राज्यपाल को हटाकर किसी स्वच्छ छवि को आसीन करेंगी.

    आपका विश्वासी-
    रजनीश कुमार,
    ग्राम पोस्ट - अरई,
    थाना - दाउदनगर,
    जिला - औरंगाबाद (बिहार),
    पिन - ८२४१४३

    10 टिप्‍पणियां:

    1. ये पत्र तो नीतीश कुमार के पी आर ओ के द्वारा भेजा गया लगता है ;-),
      नीतीश जी पहले ही व्यवस्था में परिवर्तन कर कुलाधिपति के अधिकार को क़तर कर उगाही के अन्य रास्ते बना चुके हैं. ये पत्र फर्जी जान पड़ता है.

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    2. @रजनीश के झा,
      भाई आपने फेसबुक पर भूमिहार जाति को गाली दिया था जिसके लिए मैंने आपको फटकार लगाई थी और आपको ब्लाक भी कर दिया था. आपने अभी तक कटुता पाल रखी है और पूर्वाग्रहग्रस्त कमेन्ट पोस्ट कर रहे हैं. आग्रह है कि पूर्वाग्रहग्रस्त होकर कमेन्ट ना दें. बुद्धिजीवियों की जमात में शामिल होकर ओछी हरकत ना करें. आपने अपनी इसी हरकत के कारण उस समय फेसबुक पर काफी जलालत भी झेली थी. याद रखें आप अपने व्यव्हार से सम्मान भी पा सकते हैं और आपको अपने ही कारण अपमान का घूंट भी पीना पड़ सकता है.

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    3. अति सुंदर पत्र, लेकिन यहां तो लोग आपसी खुंदक निकाल रहे हे, लेख के बारे कोई बात ही नही कर रहा

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    4. पत्र लेखक महोदय,,

      पत्र के मार्फ़त पूर्वाग्रह को तो आप प्रचारित कर रहे हैं और हाँ स्वयं प्रसंसा भी !!!!
      बहस से भाग कर आप किसे ब्लोक करने की बात कर रहे हैं, सच्चाई से भाग कर मुद्दे से लोगों को भटका कर बिहारी मीडिया की तरह गलत बयाँ बाजी करके किसे फायदा पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं. फेस बुक पर मेरे सूची में शामिल होने के लिए आपको भी अब इन्तेजार करना होगा, लम्बी सूची प्रतीक्षारत है. वैसे बता दूं की स्वयं भू बुद्धिजीवियों की जमात ( जैसा आपने स्वाम कहा) में शामिल होने की मेरी कोई इच्छा नहीं है.

      चलिए अब मुद्दे पर आ जाएँ, ऐसा पहली बार हुआ की बिहार सरकार ने जितने का अनुदान लेने के लिए केंद्र सरकार के पास गयी पुरे चौबीस हजार करोर की अनुमति दे दी गई ( ऐसा तो तब भी नहीं हुआ था जब केंद्र और प्रान्त में कांग्रेस की सरकार थी ), दूसरी बात नीतीश महोदय पहले ही विधान सभा में प्रस्ताव पारित करा चुके हैं और कुलाधिपति के सारे अधिकार में कटौती कर चुके है ( ये शायद पहला प्रान्त है जहाँ कुलाधिपति के अधिकार में कटौती राजनीति साधने के लिए किया गया है)

      विश्वविद्यालय से सम्बंदित आपकी चिंता अगर छत्रों के प्रति होती जिनका सेशन लेट है जिनके इम्तिहां और परिणाम में देरी हो रही है तो बात समझ में आती की आप बिहार के छ्ह्त्रों की आवाज उठाराहे हैं मगर यहाँ तो बिहारी मीडिया की तरह अंतरजाल के लोगों को गुमराह करने के लिए नुक्कड़ के मंच का प्रयोग कर रहे हैं.

      नीतीश का प्रवक्ता बनने के लिए बधाई.

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    5. भाटिया साहब,

      कुलपति की नियुक्ति कुलाधिपति (राज्यपाल) करता है मगर वो ये नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा भेजे गए नामों की अनुशंसा के आधार पर करता है मतलब नियुक्ति की प्रक्रिया सरकार द्वारा भेजे गए नामों में से ही होती है.

      नीतीश जी बिहार बिधन सभा में अपने प्रचंड बहुमत का स/दू (उपयोग) करके कुलाधिपति (राज्यपाल) के अधिकारों में कटौती कर के कुलपति की नियुक्ति या प्रतिनियुक्ति का अधिकार सरकार के पास हो को विधानसभा में पारित करा चुकी है (आप बिहार के सरकारी गजेट से इसकी पुष्टि कर सकते है)

      तो इस पत्र का मतलब आप खुद समझ सकते हैं की खुंदक किस बात की हो सकती है ;-)

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    6. महाशय इसे ध्यान से पढ़ें, ये मेरी टिप्पणी नहीं बल्कि समाचार है-
      Link - http://www.ubindianews.com/?p=23541

      पटना उच्च न्यायालय ने बुधवार को मगध व वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के कुलपतियों की नियुक्ति निरस्त कर दी। साथ ही न्यायालय ने नियुक्ति को अवैध ठहराते हुये राज्य सरकार से परामर्श नहीं लेने पर कड़ी टिप्पणी भी की। न्यायालय का कहना था कि इस तरह नियुक्ति होती रही तो उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों के भविष्य पर बुरा असर पड़ सकता है। भविष्य में कुलपतियों की नियुक्ति में एक-दूसरे से परामर्श लेने का भी आदेश न्यायालय ने दिया। कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद सूबे के मानव संसाधन विकास मंत्री पीके शाही ने कहा कि इन दोनों कुलपतियों की नियुक्ति में राज्य सरकार से परामर्श नहीं लिया गया। न्यायमूर्ति अजय कुमार त्रिपाठी ने कहा कि मगध विश्वविद्यालय के कुलपति अरविंद कुमार सिंह व वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति सुभाष कुमार सिन्हा की नियुक्ति में कुलाधिपति सचिवालय ने राज्य सरकार सचिवालय से परामर्श लेने को लेकर कोई ठोस सबूत पेश नहीं किये। जो सबूत हैं, उससे लगता है कि परामर्श लेने की बात को साबित करने की कोशिश की गयी है। परामर्श लिया गया होता तो सही ढंग से दस्तावेज बनाये गये होते। फाइल पर हाथ से लिखने की जरूरत नहीं पड़ती। इस तरह से दोनों कुलपतियों की नियुक्ति बिहार विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 10 (2) के खिलाफ है और इनकी नियुक्ति रद्द की जाती है। न्यायमूर्ति ने कहा कि राज्य सरकार के दस्तावेजों से लगता है कि परामर्श की काफी कोशिश की गयी थी, लेकिन कुलाधिपति सचिवालय ने राज्य सरकार के सचिवालय से परामर्श नहीं लिया। न्यायालय ने कहा है कि कुलाधिपति की तरफ से परामर्श को लेकर जो दस्तावेज पेश किये गये उससे यह पता चलता है कि परामर्श लेने की बात को साबित किया गया है। न्यायालय इसे नजरअंदाज नहीं कर सकता। इसी वजह से फैसले के साथ उन दस्तावेजों को भी आदेश में लगा दिये गये हैं। कुलाधिपति के परामर्श लेने की बात को मान भी लिया जाय तो परामर्श को लेकर जो कुछ लिखा गया है, उसमें नियुक्त होने वाले कुलपतियों के नाम नहीं हैं। जब परामर्श ही लिया गया तो राज्य सरकार के अधिकारी व कुलाधिपति सचिवालय के अधिकारी के हस्ताक्षर दस्तावेज पर क्यों नहीं हैं। इन सभी चीजों को देखने के बाद न्यायलय को परामर्श लिये जाने की बात पर गहरा संदेह होता है। दस्तावेजों से लगता है कि राज्य सरकार से कभी परामर्श नहीं लिया गया। जबकि यह जरूरी है और परामर्श को लेकर दस्तावेज पेश किये जाते। न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार ने कुलाधिपति की गरिमा को ध्यान में रखते हुए उसे मुद्दा नहीं बनाया। इसके लिए मुख्यमंत्री धन्यवाद के पात्र हैं। न्यायालय ने कहा कि भविष्य में जब भी कुलपतियों की नियुक्ति की जाय तो कुलाधिपति व राज्य सरकार के अधिकारी एक-दूसरे से जरूर परामर्श लें और एक दूसरे का विचार का सम्मान करते हुए नियुक्ति करें। नियुक्ति को लेकर उपयुक्त दस्तावेज भी बनायें जो साबित करें कि नियुक्ति में परामर्श किया गया है। यह उच्च शिक्षा पाने वाले छात्रों पर अच्छा प्रभाव डालेगा। अन्यथा उनके भविष्य पर बुरा असर पड़ सकता है। न्यायालय ने इस मामले में सभी पक्षों को सुनते हुए अपना आदेश 18 अप्रैल को सुरक्षित रख लिया था। कुलपतियों को हटाने को लेकर डा. प्रमोद कुमार सिंह ने याचिका दाखिल की थी।

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    7. जेपी विवि के कुलपति की मुश्किलें बढ़ी .
      छपरा, जागरण संवाददाता

      जय प्रकाश विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डा. दिनेश प्रसाद सिन्हा की मुश्किलें कम होते नजर नहीं आ रही है। अभी गायिका देवी प्रकरण में कुलपति पर प्राथमिकी, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्रों पर हमला के मामले में प्राथमिकी झेलने व हाई कोर्ट से बेल लेने के बाद कुलपति विवि पहुंचकर शैक्षणिक अभियान में गति देने का प्रयास कर ही रहे थे कि पटना हाई कोर्ट ने मगध विश्वविद्यालय के प्राचार्य नियुक्ति को ही गलत करार देकर विवि प्रशासन को छह माह के अंदर नयी चयन प्रक्रिया के तहत प्राचार्याें की नियुक्ति करने का आदेश दे दिया।

      उल्लेखनीय हो कि हाई कोर्ट ने जिन 27 प्राचार्याें की नियुक्ति अवैध माना है। उसमें एक जेपी विवि के कुलपति प्रो. दिनेश प्रसाद सिन्हा भी है। जेपी कुलपति के मामले में यह पेच फंसता है कि उनकी प्रतिकुलपति के नियुक्ति में यह दर्शाया गया है कि वे प्राचार्य है। इसी आधार पर उनकी नियुक्ति प्रतिकुलपति में हुई। जेपीविवि में प्रतिकुलपति रहने के बाद वह पूर्व कुलपति डा. आर.पी. शर्मा के कार्यकाल समाप्त होने के बाद जेपी विवि के प्रभारी कुलपति बनायेंगे। विश्वविद्यालय अधिनियम के जानकार बताते है कि जब डा. दिनेश प्रसाद सिन्हा प्राचार्य ही नहीं रहे तो वे प्रतिकुलपति बनने की योग्यता ही खो दिया। तो वह प्रभारी कुलपति कैसे रह सकते हैं। हाई कोर्ट का फैसला आने के बाद जेपीविवि पदाधिकारी व शिक्षकों में बेचैनी बढ़ गयी है।
      Link- http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_7550981.html

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    8. bihar me aaj jitana bharastachar hai susasan babu ki den hai.nitish kumar jaisa satir bharastachari awam aparadhik charitrik pravriti ka tatha jativadi sayad hi ko e hoga.

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