हिन्‍दी ब्‍लॉगरों इसे पढि़एगा पढ़ लें, तो टिप्‍पणी जरूर कीजिएगा : मामला बिगड़ते पर्यावरण का और बचपनीय क्रूरता का भी है

बचपन में बच्‍चासिर्फ रेल के पहिये ही नहींकितनी चींटियां जमीन पर चल रही हैंकितने मच्‍छर उड़ रहे हैंकितने कुत्‍ते भौंक रहे हैंकितनी मक्खियां हैंउन्‍हें मारने की कोशिश करता बचपनबचपन में क्रूरता का समावेश करता चलता है। वो गिनता तो है उन रोटियों को भी जिनसे वो अपने पेट की भूख मिटाता हैभाई बहनों को भी जिनके साथ रहता हैदोस्‍तों पड़ोसियों कोइन पर प्‍यार लुटाता हैमाता पिता कोहितैषियों को जिनसे असीम प्‍यार दुलार पाता है। देखता है उस इंसान के बारे में जो मुंह से धुंआ उगलता दिखलाई देता है। धुंआ सिर्फ धूम्रपान का ही नहीं, अपशब्‍दों की बारिश भी, जिनसे रोजाना रूबरू होता है। वहीं से सही-गलत सब सीखता बढ़ता रहता है। जबकि वो घट रहा होता है। दिन, शरीर के स्‍तर पर और वैचारिक स्‍तर पर बढ़ रहा होता है। अनुभवों के मायने में समृद्धत्‍व को प्राप्‍त हो रहा होता है। पर इस गिनती में कोई स्‍वार्थ नहीं होता। स्‍वार्थ से बचा रहे ऐसा नहीं होता।

यह अच्‍छा है तो मेरा हैमेरे भाई का हैमेरी बहन का हैमेरे मित्र का हैमेरे पिता का हैमाता का है और जो बुरा है वो तेरा हैकिसी अनजाने का  पूरा पढ़ने की जिज्ञासा पूर्ति के लिए यहां क्लिक कीजिए और जहां पहुंचें वहीं लिख आइयेगा
 
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