डायन भी सात घर छोड़कर वार करती है :श्रीयुत ईश्वर दास जी रोहाणी

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  • बाल भवन जबलपुर
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  • कुमार विश्वास का अहंकार इन दिनों चरम पर है. यक़ी न हो तो आप उपर लगी कतरन को ध्यान से देखिये...


    भारत के भावुक युवाओ : अपने में पहचाने की ताकत लाओ 



    जन्म: 10 फ़रवरी 1970
    जन्म स्थानपिलखुआ गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
    कुछ प्रमुख
    कृतियाँ
    एक पगली लड़की के बिन (1996), कोई दीवाना कहता है (2007)
    जीवनीकुमार विश्वास / परिचय



















    अब देखिये ये दो पोस्ट 
    और कुछ औरों की कुछ अपनी पर: कविता का दाय ?, या इलाही ये माज़रा क्या है ?
    ", कुमार विश्वास मंचीय कविता की उस गौरवशाली परम्परा के साथ भी अन्याय कर बैठे हैं , जिसमें लोकप्रियता के साथ जन-पक्ष-धरता थी | ६२' के चाइना युद्ध पर सफल मंचीय कवि गोपाल सिंह नेपाली की पंक्तियाँ जनता के लिए कंठहार बन गयी थीं | कुमार की कविता में प्रसिद्धि होने के बाद भी सामाजिक सकारात्मकता नहीं है | कुमार , बच्चन-नेपाली-नीरज-रमानाथ अवस्थी-सोम ठाकुर आदि की सफल और उपयोगी मंचीय परम्परा के वाहक नहीं हैं | कुमार को अगर किसी की परम्परा से जोड़ा जा सकता है तो गुलशन नंदा - वेद प्रकाश शर्मा के ऐयारी गद्य की काव्यात्मक प्रवृत्ति के तौर पर बनने वाली परम्परा से जोड़ा जा सकता है जिसके लिए कविता विशुद्ध ऐशो-आराम की चीज रही हो | हुल्लड़ और कुल्हड़ कविता के दाय नहीं हो सकते | "
    लाल -बवाल पर 

    8 टिप्‍पणियां:

    1. कवि और चुटकुलेबाज में बहुत अन्‍तर होता है। आज मंच पर कविता नहीं है। मैंने इन्‍हें सुना है, कविता के लिए कान तरस गए, लेकिन एक कविता सुनाने में पूरे डेढ घण्‍टे का समय चुटकुलेबाजी में लिया गया। अब इसे क्‍या कहेंगे? किस परम्‍परा के साथ रखेंगे? गुलशन नन्‍दा ने सतही उपन्‍यास लिखे लेकिन वे उपन्‍यास तो थे। लेकिन आज कविता के नाम पर कवि क्‍या परोस रहे हैं? पहले कवि सम्‍मेलन सुनने चाव से जाते थे अब तो कोई बुलाता है तो मजबूरीवश जाते हैं और औपचारिताएं पूरी होते ही घर वापस आ जाते हैं।

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    2. यह साबित करने के लिए वे डायन नहीं हैं, उन्‍होंने सात घर नहीं छोड़ें ....... क्‍योंकि डायन सात घर छोड़ देती है और वे डायन ........ या डायना ......... कुछ भी नहीं हैं

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    3. भाई अविनाश जी
      लिंग ही बदल दिया
      या आप जानते हैं

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    4. कुमार विश्वास के बारे में पहले भी काफ़ी कुछ कह चुका हूं मैं। विस्तार से अमरेन्द्र ने भी लिखा है। कुमार विश्वास में बदतमीजी की हद तक बड़बोलापन है। कविता की सहज समझ चौपट है। पिछले साल एक समारोह में, जहां कुमार विश्वास को बुलाया जाना था, जिस तरह इन्होंने आयोचकों को परेशान किया उससे मुझे लगा कि ये महाशय अजीब नखरेबाज हैं। बेचारे आयोचकों ने उनके लिये अच्छी-खासी एयरकंडीसन्ड गाड़ी का इंतजाम किया था लेकिन अगले के यहां से संदेशे आ रहे थे कि बड़ी गाड़ी भेजिये। हमने आयोजकों को सुझाया कि इनके लिये तो टॄक मुफ़ीद रहेगा। इसके बाद मैं यह कहकर कि लौट आया कि मैं ऐसे नखरेबाज चुटकुलेबाज की शकल नहीं देखना चाहता।

      मुझे आश्चर्य है कि अभी तक आपके यहां कुमार समर्थक के अंधे भक्तों की फ़ौज हमला करने क्यों नहीं आयी? उदाहरण यहां देख लीजिये http://hindini.com/fursatiya/archives/1612

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    5. आप लोगों ने कार्यक्रम सुना है, मैं वहाँ उपस्थित नहीं था.. जिस कलाकार को आप इतने मन से सुनने गये हों, उसके द्वारा किसी का भी अपमान और उपहास हो तो ऐसे में आपका गुस्सा स्वभाविक है.

      आज कुमार की लोकप्रियता का चरम एवं युवावर्ग से उनका जुड़ाव एक गौरव का विषय है किन्तु उसके बाद भी हर बात कहने की अपनी मर्यादायें और सीमा रेखाएँ होती हैं, उसका ध्यान उन्हें देना चाहिये.

      कविता का स्तर, चुटुकुले बाजी या अन्य बातचीत पर मैं कुछ नहीं कहना चाहता क्यूँकि इन्हीं सबने कुमार को यह लोकप्रियता दी है कि आज भारत के सबसे मंहगे कवि होने का उन्हें गर्व हासिल हैं और हर जगह उन्हें बुलाया जा रहा है. आज वह एक यूथ आईकान हैं.

      जो जनता आज कलाकार को इतना नाम और शोहरत देती है -वही जनता उस कलाकार के व्यवहार के चलते उसे अपनी नजरों से उतार भी सकती है, यह ध्यान हर कलाकार को रहना चाहिये.

      एकबार पुनः, न केवल बुजुर्गों का अपितु हर व्यक्ति के सम्मान का ख्याल रखा जाना चाहिये. संस्कृति का ख्याल रखा जाना चाहिये. उपहास या अपमान कभी भी बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिये. अनेकों अन्य तरीके हैं हँसने हँसाने के.

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    6. kumar vishwas ka poora sach ..........

      ab aage mujhse suno......

      http://albelakhari.blogspot.com/2011/04/blog-post.html

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    7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    8. एक अजीबोग़रीब मंज़र उस रात देखने को मिलता है :-

      एक यूथ आईकॉन नामक व्यक्ति बड़ी तन्मयता से ओल्डों की धज्जियाँ उड़ाता जा रहा है;

      परम आदरणीय अन्ना हजारे जी को जबरन अपने झंडे तले ला रहा है;

      अपने आपको इलाहाबादी अदब की प्रचारगाह बतला रहा है और बच्चन साहब को जड़ से भुलवा रहा है;

      अपने एकदम सामने बैठे हुए स्थानीय बुज़ुर्ग नेताओं, मध्य प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष आदि पर तबियत से अपने हलाहली शब्दवाण चला रहा है;

      विनोबा बाबा की प्रिय संस्कारधानी के मँच पर खड़ा या कह सकते हैं सिरचढ़ा होकर, कहता जा रहा है कि मैं उपहास नहीं, परिहास करता हूँ और उपहास ही करता जा रहा है;

      जमूरों का स्व्यंभू उस्ताद बनकर अपने हर वाक्य पर ज़बरदस्ती तालियाँ पिटवा रहा है;
      (इतनी तालियाँ अपनी ही एक-दूसरी हथेलियों पर पीटने से बेहतर था कि तालियाँ पिटवाने वाले के सर पर बजा दी जातीं, जिससे उसे लगातार ये सुनाई देतीं जातीं और उसे बार आग्रह करने की ज़हमत न उठाना पड़ती, समय भी बचता और ............. ख़ैर)

      उसे जाकर कोई कह दे भाई के,
      मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं,
      सिर्फ़ बकरी के प्यारे बच्चे के मुँह से ही कर्णप्रिय लगती है, आदमी के (दंभी) मुँह से नहीं।
      --जय हिंद

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    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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