प्रिय सुभाष भाई की वापसी बात बेबात पर : आइये स्‍वागत करें

श ब्‍दों की जीवंतता
कला या रचना केवल विचार नहीं है, नारा या भाषण भी नहीं. अपनी प्रभविष्णुता को बढ़ाने के लिए रचनाकार कला और शिल्प के उपकरणों क़ा इस्तेमाल करता है, कइÊ बार पुराने औजारों की जड़ता या प्रभावहीनता उसे नए शिल्प गढ़ने को भी मजबूर करती है. यह कलात्मकता ही उसे दर्शकों, पाठकों या श्रोताओं के बीच ले जाती है. यह सब कला के सिद्धांत और दर्शन की बातें हैं, अगर आप इन पर बहस कर सकते हैं तो केवल पेट और तिजोरी के खेल में प्राणपण से जुटे लोगों की भीड़ से अलग नजर आ सकते हैं पर क्या आप इस मान-प्रतिष्ठा से संतुष्ट होकर उपदेशक की भूमिका अख्तियार करना चाहेंगे या एक जरूरी सवाल से जूझने क़ा साहस करेंगे ... पूरा पढ़ने और प्रतिक्रिया देने के लिए यहां पर‍ क्लिक कीजिएगा
 
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