दिनेश राय द्विवेदी जी की पैनी नजर : साहित्‍य को इंटरनेट पर आना होगा और साहित्‍यकार उसके पीछे चला आएगा

दौड़े चले आओगे
 कि "जितने भी अप्रवासी वेबसाईट हैं सब मात्र हिन्दी के नाम पर अब तक प्रिंट में किये गये काम को ही ढोते  रहे हैं, वे स्वयं कोई नया और पहचान पैदा करने वाला काम नहीं कर  रहे , न  कर सकते क्योंकि वह उनके कूबत से बाहर है।" यह भी कहा गया कि साहित्य के क्षेत्र में नाम वाले लोग नेट पर नहीं आते। नेट का उपयोग सरप्लस पूंजी यानि कंप्यूटर और मासिक नेट खर्च और ब्लॉग-पार्टी का उपयोग कर संभ्रांत जन में अपना प्रभाव जमाने के लिये ही हो रहा है। नेट पर समर्पित होकर काम करने वालों को यहां  निराशा ही  हाथ लगती है। यहाँ चीजेंबिल्कुल नये रूप में उपलब्ध नहीं होती।(बासी हो कर आती हैं) पूरा पढ़ने की इच्‍छा है तो यहां पर क्लिक करें और कुछ कहना चाहें तो वहीं कहें
 
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