.तो आप साहित्यकारों के लिए हमने कहां देखा है कि भीड चित्कार मार के निहाल हो रही हो । आप ही बताइए कि ….साहित्य को इतना महंगा करते जा रहे हैं कि …साहित्य से सभी इतिहास की श्रेणी में जाते जा रहे हैं ….और ब्लॉगर जो इतिहास को वर्तमान में इतने करीने से सजों रहा है कि भविष्य का साहित्य वही होगा और शाश्वत भी । आप खुद कब उससे इसमें आ मिले आपको भान भी न हो पाएगा । रही बात मौलिकता की ….हिंदी अंतर्जाल पर लिखी गई पोस्टें , उनमें लिखी गई टिप्पणियां , और हर आक्रोश और यहां तक की गाली भी …उससे ज्यादा तो मौलिक होती ही है जो साहित्य छपने से पहले .साथी साहित्यकारों से ..प्रस्तावना के रूप में लिखवाया जाता है । ऐसे ऐसे रहस्य सामने आ रहे हैं कि सुशील से सुशील साहित्यकार शर्मा गए हैं पर आप मत हिचकिचाइये पूरा पढ़ने और अपनी बेबाक प्रतिक्रिया देने के लिए यहां पर क्लिक कीजिए
अजय कुमार झाजी कह रहे हैं : हिन्दी ब्लॉगरों और साहित्यकारों का पहला विश्वयुद्ध छिड़ने ही वाला है
Posted on by अविनाश वाचस्पति in
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हिन्दी के लिए विश्वयुद्ध आपस में ही क्यों लड़ रहे हैं