वही क्यों कर सुलगती है ? वही क्यों कर झुलसती है ?



वही तुम हो कि  जिसने नाम उसको आग दे  डाला
वही हम हैं कि  जिनने  उसको हर इक काम दे डाला
सदा शीतल ही रहती है  भीतर से सुलसती वो..!
 
कभी पूछो ज़रा खुद से वही क्यों कर झुलसती है.?

मुझे है याद मेरी मां ने मरते दम सम्हाला है.
ये घर,ये द्वार,ये बैठक और ये जो देवाला  है !
छिपाती थी बुखारों को जो मेहमां कोई आ जाए
कभी इक बार सोचा था कि "बा" ही क्यों झुलसती है ?

तपी वो और कुंदन की चमक हम सबको पहना दी
पास उसके न थे-गहने  मेरी मां , खुद ही गहना थी !
तापसी थी मेरी मां ,नेह की सरिता थी वो अविरल
उसी की याद मे अक्सर  मेरी   आंखैं  छलकतीं हैं.

विदा के वक्त बहनों ने पूजी कोख  माता की
छांह आंचल की पाने जन्म लेता विधाता भी
मेरी जसुदा तेरा कान्हा तड़पता याद में तेरी
उसी की दी हुई धड़कन इस दिल में धड़कती है.

आज़ की रात फ़िर जागा  उसी की याद में लोगो-
तुम्हारी मां तुम्हारे साथ  तो  होगी  इधर  सोचो
कहीं उसको जो छोड़ा हो तो वापस घर  में ले आना
वही तेरी ज़मीं है और  उजला सा फ़लक भी है !
                                      * गिरीश बिल्लोरे मुकुल,जबलपुर

अपने माता-पिता को ओल्ड-एज़-होम भेजने वालों  विनम्र आग्रह करता हूं कि वे अपने आकाश और अपनी ज़मीन को वापस लें आएं


1 टिप्पणी:

  1. मुझे है याद मेरी मां ने मरते दम सम्हाला है.
    ये घर,ये द्वार,ये बैठक और ये जो देवाला है !
    छिपाती थी बुखारों को जो मेहमां कोई आ जाए
    कभी इक बार सोचा था कि "बा" ही क्यों झुलसती है ?

    तपी वो और कुंदन की चमक हम सबको पहना दी
    पास उसके न थे-गहने मेरी मां , खुद ही गहना थी !
    तापसी थी मेरी मां ,नेह की सरिता थी वो अविरल
    उसी की याद मे अक्सर मेरी आंखैं छलकतीं हैं.


    माँ पर एक अच्छी मावमय कविता.....................

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