क्या ऐसा ही था मेरा भोपाल?

Posted on
  • by
  • उपदेश सक्सेना
  • in
  • (उपदेश सक्सेना)
    कल सुबह ही भोपाल पहुंचा तो पता चला कि भोपाल में हर साल आयोजित होने वाले उत्सव मेले का आज अंतिम दिन है, सो शाम ढलते ही वहां जा पहुंचा, मगर जब भोपाल की सांस्कृतिक और तहज़ीबी रवायतों के लिए मशहूर मेले के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के मंडप में पहुंचे तो मानो आस्थाओं के कई किले ढह से गए, एकबारगी तो ऐसा लगा कि कही हम सुदूर बिहार के किसी मेले की नौटंकी में तो नहीं आ गए. इस मेले के आयोजकों में भोपाल के तमाम धन्ना सेठ, भास्कर के रमेशचंद्र अग्रवाल की अगुआई में शामिल होते हैं. कार्यक्रम शुरू होने के चंद समय में ही असलियत खुल गई, अग्रवाल की गैर मौजूदगी में वहां जमा हुए वीआईपी भी धीरे धीरे खिसक लिए. पूरे मंच पर अश्लीलता का वह मंज़र दिखाई दे रहा था कि हर जगह सादगी-शराफत के चीथड़े बिखरे नज़र आ रहे थे. बहार से बुलाई गई नर्तकियों की भोंडी मुद्राएँ शोहदों को ज़रूर लुभा रही थीं, मगर शरीफों को वहां भोपाल की १० साल की सिमरन और शायद दिल्ली से आई एक अन्य नर्तकी ने बैठे रहने पर मजबूर कर रखा था. इस कार्यक्रम के वीडिओ भी जल्द आपको उपलब्ध करवाऊंगा, तब तक आप सोचिये- क्या ऐसा ही था मेरा भोपाल?



    1 टिप्पणी:

    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
    Copyright (c) 2009-2012. नुक्कड़ All Rights Reserved | Managed by: Shah Nawaz