साहित्‍य बनाम मंच : आईये विमर्श करते हैं

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  • अविनाश वाचस्पति
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  • मेरी नहीं हैं पंक्तियां
    ‘एक कवि ने पसीना बहाने वालों पर कविता लिखी,
    पसीना बहाने वालों को समझ में नहीं आई,
    मुझे समझने में पसीने आ गए।’



    यदि साहित्यिक पत्रिकाओं के पास अरुण कमल, राजेश जोशी, मंगलेश डबराल, केदारनाथ सिंह, इब्बार रब्बी जैसे कवि हैं तो कविता के दूसरे पलड़े अर्थात मंच पर भी गोपाल दास नीरज, सोम ठाकुर, बाल कवि बैरागी, उदय प्रताप सिंह, सुरेन्द्र शर्मा, पूरा पढ़ने और अपनी राय जाहिर करने के लिए यहां पर क्लिक कीजिए
     
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