सुबह हो गई है, चलो खेत मैं सोने चलें .......|
तुम सड़क ओढ़ लेना, मैं आसमान बिछा देता हूँ
ज्यादा सर्दी लगे तो गेंहू की हरी बालें भी हैं ओढ़ने के लिए
तुम माटी के ढ़ेले का सिरहाना बना लेना
मैं कुलापे मैं बहते पानी को ||
तुम्हारा साथ ................!!
पूरी कविता के लिए थोड़ी मशक्कत यहाँ करें | लिंक पर जाएँ |
http://atmadarpan.blogspot.com/2011/02/blog-post_14.html
तुम्हारा साथ ................!!!
Posted on by गुड्डा गुडिया in
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
जाते हैं...
जवाब देंहटाएंअर्रे भाई कहां कहां भेजेंगे.?
जवाब देंहटाएंसर जी गुस्ताखी माफ। लेकिन सुबह में कोई सोता है भला।
जवाब देंहटाएंभाई यही तो प्रेम मैं होता है, सब कुछ उल्टा पुल्टा, अडबड गड़बड़ लेकिन सब कुछ प्रेम का |
जवाब देंहटाएं