आज जमाने में कल्पना के गधों का वर्चस्व भी हो गया है आप आजमा सकते हैं। पहचानने वाले इन गधों और कल्पना करने वाले अंधों को पहचान भी लेते हैं। जो साधु का वेश धरे धरा पर विद्यमान रहते हैं। जो घोड़ों पर रहते हैं वे कभी आपको धरा पर नजर नहीं आते हैं। वे सदा आसमान में बल्कि अनंत क्षितिज में मंडराते रहते हैं। वे जिन घोड़ों पर सवार रहते हैं, जिन्हें दौड़ाते-उड़ाते हैं, वे सदा मिलते तो धरती पर ही हैं। बस आपको इन्हें साधना होता है या वे आपको साध लेते हैं। यह साधना-सधाना सदा ऐसा होता है कि सामने वाला खुद को असधा समझने को बाध्य हो जाता है।
हिन्दी चेतना जनवरी 2011 |
उड़ती तो कल्पना की चिडि़याएं भी खूब हैं पर वे पहचान ली जाती हैं। इन चिडि़यों को आप हिदी ब्लॉग जगत में उड़ते हुए देखते हैं, चिडि़याओं की इन उड़ानों का आनंद कतिपय ब्लॉगों पर आप नियमित रूप से पायेंगे पर इसके लिए आपको इन ब्लॉगों का नियमित विचरण करना होगा। कितने ही ब्लॉगर इन चिडि़यों को फांस लेते हैं, पकड़ लेते हैं पर वे खुद भी इनसे बच नहीं पाते हैं। आजकल हिन्दी ब्लॉगों पर कल्पना के तोतों का कब्जा जमा हुआ है। वे इन्हें पकड़ते भी नहीं हैं मतलब इन तोतों को जहां से पकड़ा जाता है, ये वहां भी रहते हैं और इनके यहां भी तोतियाते रहते हैं। इस तोतियाने को आप तुतलाना मत समझ लीजिएगा क्योंकि कल्पना के तोतों को पकड़ कर अपने ब्लॉग पर कैद करने वाले साइबर कानून के अज्ञान के कारण निर्भय नजर आते हैं। पूरा पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक कीजिये