जब भी कभी अकेलेपन या एकांत की बात होती है उसे किसी जाने अनजाने भय से जोङ दिया जाता है। ऐसा क्यों ? क्या सचमुच अकेलापन भयभीत करने वाला होता है? क्या कभी कभी ऐसा नहीं लगता कि अकेलेपन से बढकर कोई आनंद नहीं हो सकता? अपने भीतर झांकने की सुखद अनुभूति के आगे कोई और भाव ठहरता ही कहां है?
न शब्द न शोर....... एकांत का सुख वही समझ सकता है जो अपने आप के साथ समय बिताता है। यह वो समय होता है जब स्वयं को साधने का मार्ग तलाशा जाता है और कोशिश की जाती है मुझ को मैं से मिलवाने की। यही वो अनमोल पल होते हैं जिनसे हमारे विचारों को र्इंधन मिलता है। अपना मूल्यांकन करने की सोच जाग्रत और पोषित होती है। सच कहूं तो मुझे जीवन को समायोजित करने की ऊर्जा का स्रोत भी लगता है एकांत।
एकांत के बारे में एक आम धारणा यह भी है कि आप अकेले हैं क्योंकि कोई आपके साथ नहीं है या किसी को भी आपका साथ नहीं चाहिए। मुझे यह बात सही नहीं लगती क्योंकि अकेलापन समृद्ध, सृजनात्मक और स्वयं का चुना हुआ भी तो सकता है। ऐसा अकेलापन सदैव अपने होने की चेतना को जाग्रत करता है। अकेलेपन को अक्सर अवसाद से भी जोङकर देखा जाता है, पर हद से ज्यादा संवाद भी तो हमें मानसिक पीङा के सिवा कुछ नहीं देता।
आज की तेज रफतार जिंदगी में हम चाहकर भी अकेले नहीं रह पाते। भले ही इंसानों की भीङ हमारे आसपास न हो पर कुछ न कुछ हमें घेरे रहता है जो अपने भीतर झांकने का मौका ही नहीं देता। हरदम लोगों से घिरे रहना या हर समय दूसरों से सम्पर्क में बने रहने के चलते सोचने-विचारने का समय ही नहीं मिलता। हालांकि इस अजब-गजब सी व्यस्तता में भी हर इंसान कहीं न कहीं खुद को नितांत अकेला ही महसूस करता है, पर ऐसा अकेलापन आत्मचिंतन की राह नहीं सुझाता। क्योंकि आत्मचिंतन के लिए आत्मकेंद्रित होना जरूरी है। मनुष्यों की ही नहीं बेवजह के विचारों की भीङ भी इसमें बाधक बनती है।
कुछ अनसुलझे प्रश्नों का उत्तर खोजने और नये प्रश्नों के जन्म की वैचारिक प्रक्रिया को निरंतर बनाये रखने के लिए भी एकांत आवश्यक है। प्रकृति के करीब जाने और जीवन के प्रति आस्था बनाये रखने में भी एकांत की अहम भूमिका है। अपने आप को जानने , पहचानने और समझने का अहसास करवाने वाला सार्थक एकांत मुझे जीवन की जरूरत लगता है ।
न शब्द न शोर....... एकांत का सुख वही समझ सकता है जो अपने आप के साथ समय बिताता है। यह वो समय होता है जब स्वयं को साधने का मार्ग तलाशा जाता है और कोशिश की जाती है मुझ को मैं से मिलवाने की। यही वो अनमोल पल होते हैं जिनसे हमारे विचारों को र्इंधन मिलता है। अपना मूल्यांकन करने की सोच जाग्रत और पोषित होती है। सच कहूं तो मुझे जीवन को समायोजित करने की ऊर्जा का स्रोत भी लगता है एकांत।
एकांत के बारे में एक आम धारणा यह भी है कि आप अकेले हैं क्योंकि कोई आपके साथ नहीं है या किसी को भी आपका साथ नहीं चाहिए। मुझे यह बात सही नहीं लगती क्योंकि अकेलापन समृद्ध, सृजनात्मक और स्वयं का चुना हुआ भी तो सकता है। ऐसा अकेलापन सदैव अपने होने की चेतना को जाग्रत करता है। अकेलेपन को अक्सर अवसाद से भी जोङकर देखा जाता है, पर हद से ज्यादा संवाद भी तो हमें मानसिक पीङा के सिवा कुछ नहीं देता।
आज की तेज रफतार जिंदगी में हम चाहकर भी अकेले नहीं रह पाते। भले ही इंसानों की भीङ हमारे आसपास न हो पर कुछ न कुछ हमें घेरे रहता है जो अपने भीतर झांकने का मौका ही नहीं देता। हरदम लोगों से घिरे रहना या हर समय दूसरों से सम्पर्क में बने रहने के चलते सोचने-विचारने का समय ही नहीं मिलता। हालांकि इस अजब-गजब सी व्यस्तता में भी हर इंसान कहीं न कहीं खुद को नितांत अकेला ही महसूस करता है, पर ऐसा अकेलापन आत्मचिंतन की राह नहीं सुझाता। क्योंकि आत्मचिंतन के लिए आत्मकेंद्रित होना जरूरी है। मनुष्यों की ही नहीं बेवजह के विचारों की भीङ भी इसमें बाधक बनती है।
कुछ अनसुलझे प्रश्नों का उत्तर खोजने और नये प्रश्नों के जन्म की वैचारिक प्रक्रिया को निरंतर बनाये रखने के लिए भी एकांत आवश्यक है। प्रकृति के करीब जाने और जीवन के प्रति आस्था बनाये रखने में भी एकांत की अहम भूमिका है। अपने आप को जानने , पहचानने और समझने का अहसास करवाने वाला सार्थक एकांत मुझे जीवन की जरूरत लगता है ।
bahut hi achi rachna mujhe to ekant bahut pasand hai
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा।
जवाब देंहटाएंसार्थक एकांत मुझे जीवन की जरूरत लगता है ..
जवाब देंहटाएंBilkul sach kaha aapne.... mujhe to akant behad pasand hai khud ke kareeb aane ka shant pal..
आपने ठीक लिखा है एकांत के विषय में .
जवाब देंहटाएंएकांत अपने आप को जानने ,समझने के
लिये बहुत जरूरी है