किसी को सुख न दे सको, पर दुख तो मत दो। यह दुख न देना भी – मानव सेवा ही है। वरना तो सब दुख देने में अग्रणी रहते हैं। इसी को मानव सेवा मानते हैं जबकि यह अपने मन की सेवा है मानव सेवा को सर्वोपरि मानें, मन को भी मानव ही मानें। मानव से मन है, मन से मानव नहीं। मन को मानव बनाएं। प्रत्येक दिन एक नई शुरूआत है। प्रत्येक को अपने प्राणप्रिय होते हैं, जगत में ऐसे तो सभी हैं । पर हमें अपने कर्म ऐसे करने चाहिए कि हम सबके प्राणप्रिय बन सकें।
किसी बच्चे के ठोकर लगकर गिरने पर उसी भाव से मदद की जानी चाहिए, जिस भाव और तत्परता से अपने स्वयं के बच्चे की मदद के लिए हम तैयार मिलते हैं। मित्र कैसा भी हो, सुंदर लगता है। चलते हुए हर महिला की ओर वापिस घूमकर देखना मानवसेवा नहीं है, इतना तो सभी जानते हैं, फिर क्यों पलट कर देखते हैं ? पूरा पढ़ने के लिए क्लिक करें
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