विश्व सिनेमा में स्त्रियों का नया अवतार : गोवा से अजित राय
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पणजी, गोवा, 25 नवम्बर
भारत के 41वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में विश्व सिनेमा खंड में दिखाई जा रही अधिकतर फिल्मों में स्त्रियों का नया अवतार चकित कर देने वाला है। यह संयोग नहीं है कि ईरान, जापान और चीन से लेकर स्वीडन, पौलेंड, फ्रांस और जर्मनी तक की फिल्मों में हमें जो स्त्रियां दिखाई दे रही हैं, उनके सामने निजी सुखों से अधिक सामाजिक अस्मिता की चुनौती ज्यादा है। इन फिल्मों में इस सामाजिकता को नये ढंग से अंतरंग मानवीय रिश्तों के ताने-बाने से बुना गया है। मिसाल के तौर पर हम यहां दो फिल्मों की चर्चा करना चाहेंगे। स्वीडन की युवा फिल्मकार लिज़ा लैंजसेत की फिल्म प्योर (शुद्ध) की 18 वर्षीय कैटरीना एक अस्त-व्यस्त जिंदगी जीते हुए मोज़ार्ट संगीत के सहारे अपने जीवन को फिर से पटरी पर लाने की कोशिश कर रही है। दूसरी ओर ईरानी फिल्म इराक, इवनिंग ऑफ द टेंथ डे (निर्देशक – मोज़तबा राइ) की डॉक्टर मरियम सिराजी बचपन में अपनी बिछ़ड़ी बहन की खोज करते हुए युद्धग्रस्त इराक में एक विस्मयकारी अनुभव का सामना करती है।
कैटरीना के जीवन में अपार दुख हैं। एक दिन शहर के भव्य संगीत सभागार में मोजार्ट कन्सर्ट सुनते हुए उसे लगता है कि यह संगीत ही एक दिन उसकी मुक्ति का माध्यम बनेगा। उसे किसी तरह वहां रिसेप्शनिस्ट की नौकरी मिल जाती है। प्रेम और स्पर्श की चाहत उसे मोजार्ट संगीत के एक सुपर स्टार एडम के करीब लाती है। वह उसे अपना फ्रेंड फिलास्फर और गाइड समझने लगती है लेकिन एडम की नजर उसकी आकर्षक देह पर है। उन्माद उतरने के बाद वह उसे दूर फेंक देता है। पहले से ही अपने ब्आय फ्रेंड को छोड़ चुकी कैटरीना रेलवे प्लेटफार्म, सार्वजनिक पार्क और बस अड्डों पर रातें बिताते हुए फिर से अपने जीवन का ताना-बाना बुनती है। वह महसूस करती है कि जो यातना उसने झेली वह उसका अतीत था। अब वह पहले की तरह निष्पाप और कुंवारी महसूस करती है। फिल्म के आखिरी फ्रेम में पूरे पर्दे पर उसके चेहरे के बदलते भावों का अंत एक रहस्यमयी मुस्कान में होता है। जो बिना कहे बहुत कुछ कह जाता है।
पिछले कुछ वर्षों से ईरानी फिल्मों में दुनिया भर के दर्शकों का ध्यान खींचा है। गोवा फिल्मोत्सव में ईरान की 10 फिल्मों का एक विशेष पैकेज प्रदर्शित किया जा रहा है। ‘इराक – इवनिंग ऑफ द टेंथ डे’ की नायिका मरियम सिराजी एक डॉक्टर है और रेडक्रास की ओर से युद्धग्रस्त इराक में घायल लोगों का उपचार करने एक मिशन पर जाती है। 20 साल पहले बमबारी में उसकी छोटी बहन एक सैनिक के हाथ लग गई थी जिससे मिलने के लिए उसकी मां तड़प रही है। एक लंबी और दिलचस्प यात्रा के बाद वह अपनी बहन को खोज निकालती है जिसे उस सैनिक ने अपने बेटी की तरह पाला है। दोनों बहनों के मिलन का एक विलक्षण दृश्य है जिसमें दोनों एक दूसरे की भाषा नहीं जानतीं। सिराज फारसी बोलती है और अरबी नहीं जानती जबकि उसकी बहन रहमान अरबी जानती है और फारसी का एक शब्द भी उसे नहीं मालूम। इराक और ईरान के बीच अमेरिका सेना के कब्जे वाले नो मैन्स लैंड के पास एक पारंपरिक शहर में डॉक्टर सिराज तरह-तरह के लोगों से मिलती हुई अपनी बहन तक पहुंची है। उसका प्रेमी डॉक्टर, उसकी मां को तेहरान से यहां लाने में सफल होता है। सद्दाम के पतन के बाद अमेरिकी सेना के कब्जे में हम जिस इराक को देखते हैं, वह कई तरह के संकटों से जूझ रहा है। कैमरा शहर की तंग गलियों, व्यस्त बाजारों, विशाल कब्रिस्तानों, धूल से भरी सड़कों से होता हुआ इराकी लोगों के दैनिक जीवन को जिस जीवंतता के साथ हमें दिखाता है, वह एक नया सौंदर्य-शास्त्र रचना हुआ लगता है। क्या हम इसे विध्वंस का सौंदर्य-शास्त्र कहेंगे, जिसमें हर दृश्य को एक स्टिल फोटोग्राफ के रूप में देख सकते हैं। ईरान की सिराज और स्वीडन की कैटरीना जिस धैर्य, साहस और उत्साह का परिचय देती हैं, वह सिनेमा में स्त्री की बदलती छवियों का प्रतीक है।
सुन्दर रिपोर्ट ...
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