जब हम चुप दिखते है
सबसे अधिक बोल
रहे होते है
मन ही मन ।
जब हम नहीं
लिख रहे होते हैं
हम सबसे अधिक
सोच रहे होते हैं
घटनाओं को ।
या कहो हम
पचा रहे होते हैं
अपने आक्रोश को
और जब सो रहे होते हैं
तो करते हैं तैयारी
अगले जागरण की ।
और तुम कहते हो यार
आजकल दिखते नहीं
कुछ लिखते नहीं।
रोज ही तो घट्जाता
है ऐसा
जिसे लिखे बिना
रहा ही नहीं जाता ।
पक रहा होता है
कल का कथानक
बुन रहे होते है
नये सपने
जुड रहे होते है
नए समीकरण ।
बदल रहे होते है पात्र
मेरेनाटक के
ईजाद हो रही होती है
नई मांगे ।
रच रहे होते हैं दुशमन
नए-नए षडयंत्र
अब बोलो सब लिख डालूं
तो पढ पाओगे
इतना निर्मम और कटु सत्य
इसलिए कभी -कभी
कडवाहट को कुछ कम करने में
लग ही जाते हैं
कुछ पल
और फिर एक नई इबारत के साथ
रचना तो ऐसे दौडती है
मानो खूब घोटी गई पट्टी
पर सर कंडे की पैनी कलम
सुन्दर और सुघढ हर्फोंमें।
और तुम कहते हो ।
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"जब हम चुप दिखते है,सबसे अधिक बोल
जवाब देंहटाएंरहे होते है मन ही मन।"
सटीक!
मेरे एक मित्र जो गैर सरकारी संगठनो में कार्यरत हैं के कहने पर एक नया ब्लॉग सुरु किया है जिसमें सामाजिक समस्याओं जैसे वेश्यावृत्ति , मानव तस्करी, बाल मजदूरी जैसे मुद्दों को उठाया जायेगा | आप लोगों का सहयोग और सुझाव अपेक्षित है |
जवाब देंहटाएंhttp://samajik2010.blogspot.com/2010/11/blog-post.html
Kya bat hai.Kuchh kahne se kuchh mapa ja sakata hai lekin maun rahne se na jane kitne achhe bure vichar man mein aate aur kaundh kar chale jaten hai. Right observation.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंजब हम चुप होते हैं तब ही सबसे अधिक बोल रहे होते हैं ...
जवाब देंहटाएंसही !