संगठन में शक्ति है। मिलने से ही संगठन बनते हैं और मिलने से ही आपस में ठनती भी है। परंतु हिन्दी ब्लॉगरों का मिलना बनना होता है, ठनना नहीं। सारी ठनठनाहट खुशियों की आहट में बदल दिल लुभाती है। संगठन की शक्ति को सब स्वीकार करते हैं परंतु संगठन बनाने से परहेज करते हैं, इस पर आप अपने विचार अपने अपने ब्लॉगों पर जल्दी ही जाहिर करें ताकि उन्हें समेकित कर हिन्दी ब्लॉगिंग के विकास की एक महत्वपूर्ण सीढ़ी चढ़ ली जाए। सीढ़ी चढ़ना ही विकास की ओर बढ़ना है।
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अविनाश वाचस्पति जी ने इंटरनेशनल हिन्दी ब्लॉग विमर्श के अवसर पर कहा है कि
Posted on by पी के शर्मा in
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