हम स्वयं में खुश क्यों नहीं रह पाते ?

हमारा अपना वजूद इतना छोटा हो गया है कि हमने सारी खुशियों का आधार दूसरो को मान लिया है |कल हम इसलिए दुखी थे कि सामने वाले ने हमें तरजीह नहीं दी और आज इसलिए दुखी है कि मिस्टर क हमसे खुश नहीं है ,आने वाले दिनों में हम इसलिए परेशान रहेंगे कि हमें हमारा मनाचाहा नहीं मिला |क्यों भाई ,क्या हम स्वयं में खुश रहने की आदत नहीं डाल सकते | हमेशा अपने दुःख के लिए सामने वाले को दोषी ठहराना जरूरी है क्या?हम स्वयं में झाकने की कोशिश क्यों नहीं करते ?क्या हमारे साथ जो भी घटा ,उसके लिए हमेशा तीसरा व्यक्ति ही जिम्मेदार होता है / हम उसी काम को ही तो करते है जिसमे सुख मिलता है |यदि हम दबाव में काम कर रहे है तो हमें सोचना होगा आखिर हम उस दबाव में क्यो है ?कही ऐसा तो नहीं हम स्वयं भी उस कार्य में रुचि रखते है और ठीकरा दूसरों ...........................................  जारी रखने के लिए क्लिक कीजिएगा

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