मन में बसी हैं बुराईयां
उन्हें वहीं छोड़ आयें
जब रावण जलाने जायें
दशहरे की दूं शुभकामना
मन में विजय की भावना
विजयादशमी मनायें
मन में बसी बुराईयों को
पटाखों की जगह जलायें
जब रावण जलाने जायें
पोस्ट चाहें कितनी लगायें
संदेश मोबाइल से भिजवायें
फोन पर बातें बनायें
जब तक मन नहीं करेंगे साफ
बुराईयों का नहीं घटेगा ग्राफ
पोस्ट चाहे न लगायें
बुराईयों के रावण को
सिर्फ एक टिप्पणी से
कैसे अंतिम जगह पहुंचायें
मन में बसी बुराईयों के रावण को जलायें
Posted on by अविनाश वाचस्पति in
Labels:
अविनाश वाचस्पति,
बुराईयों का रावण
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अविनाश वाचस्पति जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
विजयदशमी की मंगलकामनाएं ! शुभकामनाएं !
अच्छी रचना लिखी है , बधाई !
आपको और नुक्कड़ के सभी मित्रों को समर्पित है मेरा यह दोहा …
थोथे पुतले फूंक कर करें न झूठा दम्भ !
जीवित रावण फूंकना आज करें आरम्भ !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
पुतला फूँकत जग मुआ
जवाब देंहटाएंरावण मरा ना कोय
जो फूँके निज अहंकार
रावण क्यूँ पैदा होय।
प्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
http://vyangyalok.blogspot.com
व्यंग्य और व्यंग्यलोक
On Facebook
विजय-दशमी पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसादर
समीर लाल
विजयादशमी की बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंकोशिश तो बहुत की । पर कामयाबी मिलनी अभी बाकी है ।
जवाब देंहटाएंसभी ब्लोगर्स को विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएं