मैं लाउडस्पीकर होना चाहता हूँ

Posted on
  • by
  • गुड्डा गुडिया
  • in



  • ---------- Forwarded message ----------
    From: ?????? ??????
    Date: 2010/9/23
    Subject: [आत्मदर्पण] मैं लाउडस्पीकर होना चाहता हूँ
    To: prashantd1977@gmail.com





    मैं लाउडस्पीकर होना चाहता हूँ
    दुम की और एक लम्बा सा डंडा और आगे भी फैला सा/बेडौल सा
    ना रूप बेहतर इसका, ना ही रंग
    पर बात पते की करता है ये |

    जो मस्जिद मैं चढ़ जाये तो अज़ान के बोल बोले
    और जो मंदिर मैं तो रामायण
    इससे निकली गुरबानी की धुन सुनकर लोग कहते हैं, गुरुद्वारा यहीं कही है
    और जो देने लगे घंटों की आवाज सुनाई तो जीसस याद आते हैं |

    पर ना जाने क्यूँ आदमी लाउडस्पीकर नहीं होना चाहता है
    घुसते ही किसी चहारदिवारी/परकोटे मैं
    बदल जाते हैं उसके स्वर
    भूल जाता है वह इंसान होने की पहली शर्त यानी भाईचारा

    लेकिन उसे(लाउडस्पीकर को) मंदिर/मस्जिद/गुरूद्वारे/चर्च मैं जाने से पहले
    नहीं ताकना पड़ता है किसी अदालत की और
    वह तो जहाँ जाता है वहीँ का हो जाता है |

    मैंने पहले ही कहा था
    वह बेडौल तो है लेकिन बात पते की करता है |
    इसलिए मैं मैं लाउडस्पीकर होना चाहता हूँ |||

    3 टिप्‍पणियां:

    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
    Copyright (c) 2009-2012. नुक्कड़ All Rights Reserved | Managed by: Shah Nawaz