रात कब बीते कब सहर निकले
इसी सवाल में उमर निकले
तमाम उम्र धडकनों का हिसाब
जो हल निकाला तो सिफर निकले
बद्दुआ दुश्मनों को दूँ जब भी
रब करे सारी बेअसर निकले
हर किसी को रही अपनी ही तलाश
जहाँ गए जिधर जिधर निकले
हमीं काज़ी थे और गवाही भी
फिर भी इल्ज़ाम मेरे सर निकले
किसी कमज़र्फ की दौलत शोहरत
यूँ लगे चींटियों को पर निकले
उजले कपड़ों की जिल्द में अक्सर
अदब-ओ-तहजीब मुख्तसर निकले
….आपका पद्म ..06/09/2010
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