नेता बडा या गुरु, बखेडा काहे का

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  • सुनील वाणी
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    सुना है नेताजी ने गुरु का अपमान कर दिया, अरे भाई! नेता तो स्वार्थ की प्रतिमूरत है, उसके लिए किसी का मान क्या और अपमान क्या। वैसे भी वे गुरु तो केवल गिने-चुने के ही होंगे, नेता तो पूरे देश का है तो सबसे बडा गुरु इस लिहाज से तो नेता ही हुआ न। आप लोग भी छोटी सी बात का बखेडा खडा कर देते हैं। हैं तो भारतीय ही न, आदत तो भारतीयों वाली ही रहेगी। नेता(गिल) ठहरा आई-पिल, प्रभावशाली तो होगा ही। अब फोटो में अदना सा गुरु दिखेगा तो गिल का आई-पिल जैसा प्रभाव कहां रहेगा। वैसे भी जिसको प्रतिक्रिया देना चाहिए था, वो तो चुपचाप मुस्कुराता रहा, विश्वास न हो तो अखबारों में छपे फोटो का देख लीजिएगा। फिर भला हम क्यों अंगुली करने पर तुले हुए हैं। एक ठहरा विश्व विजेता तो दूसरा ठहरा देश का नेता, दोनों एक-दूसरे में अपना लाभ देख रहे थे लेकिन मीडिय वालों को तो आजकल बखेडा करने के अलावा कुछ सूझ ही नहीं रहा है। अखबारों में छपे फोटो को देखिए शिष्य के चेहरे पर क्या चमक है। गुरु के अपमान का अफसोस तो बाद में भी होता रहेगा।
    और अंत में- गुरु तो कुम्हार ही रहेगा, शिष्य को कुंभ बनाता ही रहेगा।
    गुणगान तो उसका होना चाहिए जो उस कुंभ में तरह-तरह का खजाना डालेगा।

    4 टिप्‍पणियां:

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