कन्हैयालाल नंदन के संबंध में लिखने को कुछ सोचता हूं कि एक विशाल चुनौती युक्त दुर्गम किंतु इंद्रधनुषी प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त ,निमंत्राण देता पर्वत मेरे सामने खडा है। ऐसी चुनौतियों को स्वीकार करना मुझे अच्छा लगता है । और इतने बरस से नंदन जी को जानता हूं, इतनी यादे हैं कि उनपर लिखना बांए हाथ का खेल है । पर लिखने बैठा तो उंट पहाड के नीचे आ गया । पता चला कि दोनों हाथों , दिलो – दिमाग और अपनी सारी संवेंदनाओं को भी केंद्रित कर लूं तो इस लुभावने पर्वत के सभी पक्षों को शब्द बद्ध नहीं कर पाउंगा । नैनीताल के पास एक ताल है — नौकुचिया ताल । कहते हैं इसके नौ कोणों को एक साथ देख पाना असंभव है । इस व्यक्तित्व में इतने डाईमेंशंस हैं कि … । तुलसीदास ने कहा है कि जाकि रही भावना जैसी प्रभु मूरति देखी तिन तैसी । अब कन्हैयालाल नामक यह प्राणी प्रभु है कि नहीं अथवा नाम का ही कन्हैया ,यह खोज करना आधुनिक आलोचकों का काम है पर इस मूरति को लोग अनेक रूपों में देखते हैं , यह तय है। इस नौकुचिया ताल के कोणों में- कला,कविता,मंच, पत्रकारिता,मीडिया, संपादन,अध्यापन, मैत्री, परिवार आदि ऐसे कोण हैं जिन्हे किसी एक साथ देख पाना संभव नहीं है
कन्हैयालाल नंदन-एक जीवंत नौकुचिया ताल
Posted on by अविनाश वाचस्पति in
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