सीआरएफ की सडकों का बहिष्कार क्यांे नहीं करते जनसेवक
फोरलेन पर घडियाली आंसू पर जब केंद्रीय मदद की आती है बात तो भूल जाते हैं सिवनी के हक का मामला
(लिमटी खरे)
सिवनी। उत्तर दक्षिण गलियारे में पेंच नेशनल पार्क का पेंच फंसने के बाद जब भी जनाक्रोश भडकने की आशंका होती है, सिवनी जिले के सांसद विधायक घडियाली आंसू बहाना आरंभ कर देते हैं, किन्तु जब भी केंद्रीय सहायता से बनने वाली सीआरएफ (सेंट्रल रोड फंड) की सडकों की बात आती है, तो ये सारे सांसद विधायक उन्हें लपकने लालायित ही दिखते हैं। वस्तुतः अगर सिवनी के हितों की इतनी ही चिंता में ये जनसेवक दुबले हुए जा रहे हैं तो फोरलेन के अडंगे के हटने तक इन्हें केंद्रीय सहायता से बनने वाली सडकों का बहिष्कार करना चाहिए।
गौरतलब है कि मुगल शासक शेरशाह सूरी के जमाने के इस मार्ग जिसे अब उत्तर दक्षिण गलियारे की संज्ञा दे दी गई है, से होकर आदि शंकराचार्य ने भी गमन किया था। इस सडक में पेंच नेशनल पार्क के महज नौ किलोमीटर के हिस्से के कथित तौर पर विवादित होने के उपरांत इसके निर्माण का काम रोक दिया गया है। सडक निर्माण में फंसा पेंच मूलतः भूतल परिवहन मंत्रालय और वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के बीच अहं की लडाई का एक हिस्सा बन गया बताया जा रहा है।
अप्रेल माह में एक समाचार पत्र को दिए साक्षात्कार में वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कहा था कि सिवनी की जनता चाहती है कि यह मार्ग सिवनी से होकर जाए किन्तु उन्हें मौके पर जाकर (संभागीय मुख्यालय जबलपुर जाकर) देखा और पाया कि यह पेंच कारीडोर को काट रही है, इसलिए उन्होंने इस मार्ग को रेड लाईट दिखाकर रोक दिया है। मामला किसने और किसके आदेश से रूका है, यह अनसुलझी पहेली आज भी सिवनी जिले की भोली भाली जनता के मानस पटल में घूम रही है।
जितने मुंह उतनी बात की तर्ज पर जिसके मन में जो आ रहा है, वह वैसी कहानी गढकर जनता के समक्ष प्रस्तुत करने से नहीं चूक रहा है। वहीं दूसरी ओर एक और खुलासे से केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री के दावे की हवा निकल जाती है जिसमें इसी कारीडोर से होकर गुजरने वाले बालाघाट से जबलपुर नेरोगेज के अमान परिवर्तन को वन विभाग द्वारा हरी झंडी दे दी जाती है। मतलब साफ है कि जयराम रमेश की नजरों में सिवनी से होकर गुजरने वाला उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारा तो वन्य जीवों पर प्रतिकुल प्रभाव डाल रहा है पर इसी कारीडोर से होकर गुजरने वाली रेल लाईन से इन वन्य प्राणियों को कोई असर होने वाला नहीं। एक ही मामले में दो तरह का रवैया समझ से परे ही कहा जाएगा।
सिवनी जिले से ताल्लुक रखने वाले भाजपा के बालाघाट के सांसद के.डी.देशमुख, मण्डला के कांग्रेसी सांसद बसोरी मसराम द्वारा एक साल पूरा होने पर भी इस मामले में संसद में प्रश्न न लगाने से उनकी भूमिका जिलावासियों की नजरों में तो संदिग्ध हो ही चुकी है, साथ ही साथ भाजपा की सिवनी विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, लखनादौन की शशि ठाकुर, बरघाट के कमल मस्कोले सहित केवलारी के इकलौते कांग्रेसी विधायक ठाकुर हरवंश सिंह ने भी विधानसभा का ध्यान इस ओर आकर्षित नहीं कराया है, जिससे जनमानस में इनका जनादेश के प्रति सम्मान साफ परिलक्षित होने लगा है।
उल्लेखनीय होगा कि भूतल परिवहन मंत्रालय द्वारा जब भी इन जनसेवकों के सामने प्रलोभन के तौर पर सीआरएफ मद से सडक निर्माण की बात रखी जाती है, तो ये सभी फोरलेन विवाद को बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध लेय की तर्ज पर फोरलेन को भूलकर अपने अपने क्षेत्र को समृद्ध करने की जुगत लगाने लग जाते हैं। ये सारे जनसेवक यह भूल जाते हैं कि यह मार्ग लखनादौन, केवलारी, सिवनी, बरघाट विधान सभा क्षेत्र के साथ ही साथ मण्डला और बालाघाट संसदीय क्षेत्र से होकर भी गुजर रही है, जिसकी रक्षा करना इन जनसेवकों की पहली प्राथमिकता होना चाहिए।
कहा जा रहा है कि फोरलेन मामले में जनसेवकों का ध्यान फोरलेन प्रकरण से भटकाने हेतु सांसद विधायकों के सामने जलेबी लटकाने के लिए कंेद्र में बैठे नुमाईंदों द्वारा केंद्रीय सडक निधी की सडकों को परोस दिया जाता है। जैसे ही इन सडकों की बात आती है, सांसद विधायकों द्वारा एतिहासिक महत्व के इस उत्तर दक्षिण गलियारे के पेंच नेशनल पार्क के प्रकरण को ठंडे बस्ते में डाल कर केंद्रीय सडक निधि का झुनझुना पकड लिया जाता है।
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