नक्कारखाने में तूती की आवाज साबित न हो यह विरोध

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    तारीफे काबिल है स्वप्रेरणा से किया अहिंसक विरोध
     
    फोरलेन बचाने अभी भी सुलग रही है सिवनी वासियों के मन में आग
     
    जिला कलेक्टर से मिलकर मामले को सुलटाने के होना चाहिए प्रयास
     
    (लिमटी खरे)

     
    केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे के मानचित्र से सिवनी जिले का नामोनिशान मिटाने की साजिश से सिवनी वासियों के मानस पटल पर रोष और असंतोष की ज्वाला अभी शांत नहीं हुई है। सिवनी के निवासी इस कुत्सित प्रयास का विरोध करने का माद्दा आज भी रख रहे हैं। मंगलवार 3 अगस्त को जिला मुख्यालय के निवासियों ने स्वप्रेरणा से आधे दिन का बंद कर जता दिया है कि वे फोरलेन के लिए कितने आतुर हैं।
     
    गौरतलब होगा इसके पहले जब परिसीमन और पुर्नारक्षण के चलते सिवनी लोकसभा का विलोपन करने की खबरें आम हुईं थीं तब भी सिवनी वासी सडकों पर उतर आए थे, उस समय भी भगवान शिव की सिवनी के भोले भाले नागरिकों ने शांति, संयम और धैर्य के साथ सिवनी में जिस तरह का जनता कर्फयू लगाया था, उसकी गूंज दिल्ली तक गई थी, जिसे सभी ने सराहा था। यह अलहदा मामला है कि इतना सब कुछ होने के बाद भी सिवनी लोकसभा के अवसान को बचाया नहीं जा सका था।
     
    इस बार जब फोरलेन बचाने वालों ने बंद का आव्हान किया तब तरह तरह के कायस लगाए जा रहे थे। सोमवार को बंद का आव्हान करने वालों ने भले ही बंद के लिए व्यापक स्तर पर अपील न की गई हो, किन्तु शहर के व्यवसाईयों ने स्वप्रेरणा से जिस तरह शांति पूर्वक बंद का आयोजन किया वह तारीफे काबिल ही कहा जा सकता है। किन्तु इस सफलता से अतिउत्साह में आने की आवश्यक्ता कतई नहीं है, क्योंकि अति उत्साह में आंदोलन पथ से भटकने की संभावनाएं बलवती हो जाती हैं।
     
    हम आज पुनः अपनी उसी बात पर कायम हैं कि इस फोरलेन के अवसान के प्रयासों के मामले में एक बार फिर हमें सोचना होगा कि मामलें में कांटा कहां फंसा है। मामला माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है, किन्तु नगर पंचायत, लखनादौन के पूर्व अध्यक्ष दिनेश राय और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता राजकुमार खुराना के सार्वजनिक किए गए वक्तव्यों से साफ हो जाता है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने न तो नागपुर रोड पर कुरई घाट और जबलपुर रोड पर बंजारी के पास का काम रोका है, और न ही इसे आरंभ करने में उन्हें कोई आपत्ति है।
     
    अगर इन नेता द्वय की बात सच है तो फिर मामला तत्कालीन जिला कलेक्टर सिवनी पिरकीपण्डला नरहरि के 18 दिसंबर 2008 को जारी किन्तु 19 दिसंबर को पृष्ठांकित आदेश के तहत अवरूद्ध हुआ है। सवाल यह उठता है कि जब काम को सिवनी के जिला कलेक्टर द्वारा ही रोका गया है, तब फोरलेन बचाने आगे आने वाले संगठनों द्वारा जिला कलेक्टर सिवनी से अब तक इस मामले मंे चर्चा कर इसका निकाल निकालने का जतन क्यों नहीं किया गया है? माननीय सर्वोच्च न्यायालय में मामला लंबित है, इस मामले के दो विशेष पक्षों के रूप में वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश और भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के नाम सामने आ रहे हैं जिन पर आरोप है कि उनके चलते इस सडक का निर्माण रूका हुआ है।
     
    राजनैतिक प्रतिबद्धताओं के चलते एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप आम बात है, किन्तु जब मामला सार्वजनिक और विशेषकर सिवनी के हित का हो तो फिर हमारे विचार से इसमें राजनैतिक प्रतिबद्धताओं को गौड ही करना आवश्यक है, वरना यह पूरा मामला राजनीति की बली ही चढ जाएगा और मूल मुद्दा अंत तक कायम रहेगा। हमारी अपनी राय में इस मामले में चूंकि एक बार प्रथम दृृष्टया उभरकर सामने आ रही है कि मामले को जिला कलेक्टर द्वारा आदेश जारी कर रोका गया है, अतः जिला कलेक्टर से मिलकर मामले को सुलझाना पहली प्राथमिकता होना चाहिए, वस्तुतः एसा होता अब तक दिखा नहीं है। जब भी फोरलेन की बात सामने आ रही है, ले दे कर सभी इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय पर लाकर टिका दे रहे हैं।
     
    इस पूरे मामले में जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा से भी हम सहमत नहीं हैं। वस्तुतः विधायक और सांसद जिन्हें सिवनी के मतदाताओं ने जनादेश देकर सदन में भेजा है, उन्हें भी इस मामले में स्वप्रेरणा से पहल करना चाहिए। अगर विधायक सांसद अपनी जवाबदारियों का निर्वहन करने में अपने आप को सक्षम नहीं पा रहे हैं तो आंदोलन का नेतृत्व करने वालों को चाहिए कि इन जनसेवकों से मिलकर उनको एक निश्चित समय सीमा तक का समय दें, और अगर समय सीमा में वे अपनी जवाबदारियों के निर्वहन में असफल हों तो उनका वह चेहरा भी उनको जनादेश देकर सदन में भेजने वाली जनता के समक्ष रखना चाहिए। वैसे यह काम आंदोलन के आरंभ होने के उपरांत कुछ माहों में हो जाना चाहिए था। हमारी अपनी निजी राय में अभी भी देर नहीं हुई है, विधायक सांसद को कम से कम तीस दिन का अल्टीमेटम दिया जाना आवश्यक है, जरूरी नहीं कि इससे आंदोलन का नेतृत्व करने वाले सहमत हांे।

    इस मामले में आंदोलन का नेतृत्व करने वाले सम्मानीय बंधुवरों से हम विनम्र आग्रह करना चाहते हैं कि चूंकि मामला जिला कलेक्टर सिवनी द्वारा जारी आदेश के तहत रोका गया है, अतः इस मामले में जिले के विधायक सांसद और प्रभारी मंत्री के सहयोग से सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान सहित प्रदेश के मुख्य सचिव आदि को पहल के लिए बाध्य करना होगा, ताकि सिवनी से होकर गुजरने वाली शेरशाह सूरी के जमाने की एतिहासिक महत्व की इस सडक के अस्तित्व को बचाया जा सके। पिछले साल 21 अगस्त और आज जिला मुख्यालय की जनता ने यह जता दिया है कि वह फोरलेन के साथ छेडछाड बर्दाश्त करने की स्थिति में कतई नहीं है। साथ ही हमें यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि इस तरह के सफल आंदोलन अपने आप में एक उर्जा का काम अवश्य करते हैं, किन्तु कहीं इन आंदोलनों की गूंज दिल्ली और भोपाल में बज रहे नगाडों के बीच ''नक्कारखाने में तूती की आवाज'' न साबित हो जाएं।
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