

पहचानिए ये हैं क्रमश: वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉग विचारक और वर्ष के श्रेष्ठ विचारक ,
जिनकी हो रही है चर्चाएँ -
आईये आप भी दीजिये इन्हें शुभकामनाएं
बस एक किलिक की दूरी पर हैं-
वर्ष के श्रेष्ठ विचारक
वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉग विचारक
साथ ही -
ब्लोगोत्सव में सितारों की महफ़िल में हैं -
श्री जी. के .अवधिया
और श्री गिरीश पंकज
सर्वत जमाल से मेरा याराना 1978 से है जब वह गोरखपुर का रूपोर्ट मर्डाक हुआ करता था . विज्ञापन की दुनिया का बेताज बादशाह ! मैं उस वक्त ताज़ा ताज़ा 'जागरण' में सम्पादकीय प्रशिक्षु भर्ती हुआ था .मेरी लिखी हुई खबरों और हेडिंग पर अक्सर सम्पादकीय विभाग में चर्चा होती थी जिसमे सर्वत भी शामिल रहता था.तडित दादा और अखिलेश मिश्र की चेलहटी में हमारी दोस्ती पनपी जो आज बत्तीस साल बाद भी कायम है. उसकी खुद्दारी, हातिमताईपने और लाख दुश्वारियों में भी हमेशा नार्मल दिखने की खूबियों ने उसे परेशान ही किया है, मगर यही तो उसका सर्वतजमालपन है जो उससे छूटता ही नहीं.नौकरी हमेशा सर्वत के लिए फ़ुटबाल जैसी रही जिसे उसने हमेशा लतियाया .बड़े बड़ों को सर्वत ने उनकी औकात दिखाई .सर्वत आज मेरे लिए बिलकुल अनजान सी, ना जाने किस दुनिया में जी रहा है, ना जाने किन लोगों से उसका साबका है ,ना जाने क्या उसकी मसरूफियतें हैं - मुझे नहीं पता मगर इतनी तो तसल्ली थी ही कि जहां भी है ,जैसे भी है ,ठीक ही होगा .
जवाब देंहटाएंसिद्धार्थनगर में जो भी वाकया हुआ उसे जानने के बाद यही कहूँगा कि शेरोशायरी की संवेदनशील दुनियां में एक संवेदनशील इंसान की संवेदनाओं को इतनी बेरहमी से कुचलनेवाले कभी भी सच्चे साहित्यकार नहीं हो सकते- हाँ दूकानदार जरूर होंगे जिन्हें शायद सर्वत की खुद्दारी रास नहीं आयी .सर्वत के शेर से ही बात पूरी करता हूँ-
रोटी लिबास और मकानों से कट गए ,हम सीधे सादे लोग सयानों से कट गए
'सर्वत' जब आफताब उगाने की फ़िक्र थी,सब लोग उलटे सीधे बहानों से कट गए
------रवि राय ,गोरखपुर