वीरेंद्र सेंगर की कलम से
जाति, धर्म व खापों की संकीर्ण लक्ष्मण रेखाएं तोड़ने वाले युवा जोड़ों को इधर लगातार मौत के घाट उतारा जा रहा है। राष्ट्रीय राजधानी में भी खापों का खौफ दस्तक दे चुका है। हाल के महीनों में दर्जनों खापों की दरिंदगी की दास्तानें सामने आ चुकी हैं। झूठी शान के नाम पर इन मदमस्त जाति समूहों ने उकसावा देकर कई भाइयों के हाथों से ही बहनों का खून करा दिया। कई जगह आदिम युग की बर्बरता को मात देते हुए दिन दहाड़े पत्थरों से युवा जोड़े को तिल-तिलकर मरवा डाला गया। कसूर, यही कि उन्होंने खाप की ‘मर्यादाओं’ को तोड़ा था। और प्रेम करने की जुर्रत की थी। मौजूदा कानूनी प्रावधानों में इसकी पूरी गुंजाइश है कि जातीय स्वाभिमान के नाम पर मौत का खेल रचाने वाले बच जाएं। ऐसे में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में व्यापक संशोधनों का प्रस्ताव गृह मंत्रालय ने तैयार किया है लेकिन कैबिनेट के अंदर कुछ मंत्रियों ने इतने कड़े कानूनी प्रावधानों पर तरह-तरह के सवाल उठाए। पूरा पढें बात-बेबात पर
मौत के खिलाड़ियों के खिलाफ नरमी
Posted on by Subhash Rai in
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