आज विश्व जनसँख्या दिवस मनाया जा रहा है । जनसँख्या के मामले में विकसित और विकासशील देशों मेंकितना फर्क है , आइये देखते हैं , इस कविता के माध्यम से । पता चला है कि ---
इंग्लैण्ड के आदमी और कुत्ते , काम में इतना मशगूल हो जाते हैं
कि मालिकों की तरह उनके कुत्ते भी , बच्चे पैदा करना ही भूल जाते हैं ।
अब तो ब्रिटिश सरकार को भी यह सत्य सताता है
कि वहां दोनों प्रजातियों में बच्चे कम , और बुजुर्गों की संख्या ज्यादा है ।
इस विचार से हमारी सरकार तो बड़ी भाग्यशाली है
क्योंकि यहाँ बच्चे और कुत्ते , दोनों के मामले में खुशहाली है ।
और इस खुशहाली से हमारी सरकार , थोड़ी चिंतित तो नज़र आ रही है
परन्तु ऐसा लगता है कि हमसे ज्यादा , अमेरिका को चिंता सता रही है ।
और जब ज्योर्ज बुश को चिंता ने अधिक सताया
तब उन्होंने एक वैज्ञानिक आयोग बैठाया ।
जिसने बताया कि धरती पर १.३ मिलियन बिलियन मनुष्य रह सकते हैं
यानि अभी हम और दो लाख गुना लोगों का बोझ सह सकते हैं ।
यह तथ्य जानकर उनकी तो जान में जान आई
पर उनके सामान्य ज्ञान पर हमको बड़ी हंसी आई ।
अरे हमें तो ये बात पहले ही मालूम थी , तभी तो हम चैन से जिए जा रहे हैं
और बेफिक्र होकर बेधड़क , बच्चे पैदा किये जा रहे हैं ।
नोट : सभी तथ्य समाचार पत्रों से लिए गए हैं ।
आज विश्व जनसँख्या दिवस पर एक प्रस्तुति ---
Posted on by डॉ टी एस दराल in
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व्यंग
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tathy bhee aur pady bhee ....ati sunder rachana......aankdo ko spassht kartee.......aur saamyik bhee .
जवाब देंहटाएंAabhar.
aapke blog par aatee rahtee hoo gyan vardhan hota rahta hai par comment nahee chodatee aksar karan ise yogy apane ko nahee samajhatee........
Aabhar
वाह ।
जवाब देंहटाएंबहुत खुब जी,
जवाब देंहटाएंदराल सर,
जवाब देंहटाएंअगर दुनिया दस अरब तीस करोड़ लोगों का बोझ झेल सकती है तो फिर तो भारतीयों के दुनिया पर राज करने की भविष्यवाणी सच साबित हो सकती है...क्योंकि ऐसा हुआ तो धरती पर हर दूसरा नहीं तो तीसरा आदमी तो ज़रूर भारतीय होगा...और किसी प्रोडक्शन में हम आगे हो या न हो, इस मामले में कोई हमें पीछे नहीं छोड़ सकता...
जय हिंद...
:) :)
जवाब देंहटाएंबढ़िया व्यंग
करारा व्यंग्य है ये कविता सर..
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