परिकल्पना की एक और नयी पहल : एक गीत एक कहानी एक नज़्म एक याद

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  • रवीन्द्र प्रभात
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  • "ले अभाव का घाव ह्रदय का तेज
    मोम सा गला
    अश्रु बन ढला
    सुबह जो हुई
    सभी ने देख कहा --- शबनम है !"

    - सरस्वती प्रसाद

    ज़िन्दगी के दर्द ह्रदय से निकलकर बन जाते हैं कभी गीत, कभी कहानी, कोई नज़्म, कोई याद ......जो चलते हैं हमारे
    साथ, ....... वक़्त निकालकर बैठते हैं वटवृक्ष के नीचे , सुनाते हैं अपनी दास्ताँ उसकी छाया में.



    लगाते हैं एक पौधा उम्मीदों की ज़मीन पर और उसकी जड़ों को मजबूती देते हैं ,करते हैं भावनाओं का सिंचन उर्वर शब्दों की क्यारी में और हमारी बौद्धिक यात्रा का आरम्भ करते हैं....



    अनुरोध है, .... इस यात्रा में शामिल हों, स्वागत है आपकी आहटों का .... जिसे 'वटवृक्ष' सुन रहा है ....................




    प्रविष्टियाँ निम्न ई-मेल पते पर प्रेषित करें -
    ravindra.prabhat@gmail.com


    कृपया ध्यान दें :

    दिनांक १२.०७.२०१० से परिकल्पना सम्मान-२०१० की घोषणा की जानी है, इस घोषणा के समापन के पश्चात उपरोक्त कार्यक्रम की शुरुआत परिकल्पना पर की जायेगी, इसलिए अपनी रचनाएँ शीघ्र प्रेषित करें !

    6 टिप्‍पणियां:

    1. bahut hi badhiya jankari di hai magar poori tarah samajh nahi aayi hai kripaya detail mein batayein ki kaisi rachnayein aamantrit hain prakashit ya aprakashit?

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    2. badhai, ek nai muhim ki. इस यात्रा में शामिल हो magar kaise? paiyojanaa ko thodaa aur spasht kare.

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    3. वन्दना जी और गिरीश भाई,
      आप अपनी स्मृतियों को टटोलें , वह कुछ भी हो सकती है या तो बचपन की यादें हो अथवा माता-पिटा और बच्चों से संदर्भित यादें . यादें जो प्रेरणाप्रद हों ...यादें जो सकारात्मक हों......यादें जो आपको आंदोलित कर गयी हों ......यादें कोई भी जो सुखद हो ....उसे नज़्म, गीत, कहानी या फिर शब्दों का गुलदस्ता बनाते हुए प्रेषित कर सकते हैं ....या फिर ऐसी प्रेरणाप्रद बातें जो एक सुखद और सांस्कारिक वातावरण तैयार करने की दिशा में सार्थक हों उसे पद्य या गद्य का रूप देकर भेज सकते हैं .....रचना प्रकाशित हो अथवा अप्रकाशित कोई फर्क नहीं पड़ता किन्तु मौलिक अवश्य हो ....!

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    4. और हाँ इसमें शामिल होने के लिए ब्लोगर होना आवश्यक नहीं है , कोई भी शामिल हो सकता है जो सृजन से जुडा हो !

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    5. बहुत सुन्दर भाई रवीन्द्र प्रभात जी, आप ने एक नयी खिड़्की खोल दी, अच्छा लगा. नयी खिड़्की, दो अर्थों में. एक तो यह कि एक मुहिम और, दूसरा यह कि केवल ब्लागरों तह सीमित नहीं. यह बाहर का जो किवाड़ खुला है, बहुत ताजी हवा लेकर आयेगा.

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    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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