साथियों,
बड़े भाग्य मानुष तन पावा। तुलसी द्वारा कही गयी ये पंक्तियाँ यह दर्शाती हैं की बड़े ही पुण्य कर्मों के पश्चात मनुष्य का शरीर मिलता है। लेकिन मनुष्य होकर भई यदि मनुष्य के काम न आ सके तो इस हांड मांस के शरीर का क्या अर्थ रह जाता है! दूसरे मनुष्य के प्रति ठीक उसी प्रकार कि भावना क्या नहीं रखनी चाहिए जैसी कि हम दूसरों से अपेक्षा रखते हैं। आज उसी मनुष्यता एवं सदभावना की जरूरत अंजलि को है, जो एक भयानक बीमारी से जऊझ रही है।
अधिक जानकारी यहाँ पढ़ें और अंजलि की हर संभव मदद करने के लिए आगे आयें। http://ujjas.blogspot.com/
जिन्दगी बचाने की मुहिम
Posted on by उमाशंकर मिश्र in
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