कल रात नींद न आई .................कविता

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  • कल रात नींद न आई 
    करवट बदल बदल कर 
    कोशिश 
    की थी सोने की
    आखें खुद बा खुद भर आई
    तुम्हारे न आने पर
    मैं उदास होता हूँ जब
    भी
    ऐसा ही होता है मेरे साथ
    फिर जलाई भी मैंने माचिस 
    और
    बंद डायरी से निकली थी तुम्हारी तस्वीर 
    कुछ ही देर में बुझ गयी थी रौशनी
    और उसमे खो गयी थी
    तुम्हारी हसी
    जिसे देखने की चाहत लिए मई
    गुजर देता था रातों को
    सजाता था सपने तुम्हारे
    तारों के साथ
    चाँद से भी खुबसूरत
    लगती थी तुम
    हाँ तुम से जब कहता ये
    सब
    तुम मुस्कुराकर
    मुझे पागल
    कहकर कर चिढाती थी
    मुझे अच्छा लगता था
    तुमसे यूँ मिलना
    जिसके लिए तुम लिखती ख़त 
    लेकिन 
    कभी वो पास न आया मेरे
    और जिसे पढ़ा था मैंने हमेशा ही

    1 टिप्पणी:

    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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