खामोश क्‍यों हैं कमल नाथ समर्थक

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  • आखिर खामोशी क्यों ओढ रखी है कमल नाथ का झंडा उठाने वालों ने 

    अगर कमल नाथ दोषी नहीं तो क्यों नहीं देते सफाई
     
    सिवनी के अधिकार के लिए अब तक क्यों नहीं की पहल कमल नाथ ने
     
    (लिमटी खरे)

     
    सिवनी 22 जुलाई। राजनेताओं के अथक प्रयासों के बावजूद भी भगवान शिव प्रसन्न हुए और अटल बिहारी बाजपेयी के कार्यकाल की महात्वाकांक्षी स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे के नक्शे से सिवनी का नाम न मिट सका। जब राजनेताओं के भरसक प्रयास से यह नहीं हो सका तो अब इसे सिवनी से होकर न जाने देने के लिए ना ना प्रकार के षणयंत्र आरंभ होने लगे। वैसे भी षणयंत्रों के ताने बाने के चलते ही सिवनी लोकसभा सीट का बिना प्रस्ताव के ही अवसान हो गया, और सभी खामोश रहे। इसके बाद पडोसी जिले छिंदवाडा में वहां के सांसद कमल नाथ ने ब्राड गेज का तोहफा दे डाला, इतना ही नहीं छिंदवाडा के साथ ही साथ बालाघाट को अपने हृदय में बसाने वाले कमल नाथ ने बालाघाट जिले में बालाघाट गोंदिया, बालाघाट कटंगी ब्राडगेज को न केवल स्वीकृत करवाया वरन इसके उद्घाटन में हरी झंडी दिखाने भी आए।
     
    इसके उपरांत बालाघाट से जबलपुर रेल मार्ग के रास्ते में आने वाली हर रूकावट के लिए कमल नाथ पूरी तरह कटिबद्ध ही नजर आ रहे हैं, यही कारण है कि इसके वन क्षेत्र से होकर गुजरने मंे आने वाली बाघाओं को तत्काल दूर करवाने के लिए कमल नाथ ने वनमंत्री को पत्र भी लिखा है। इसके पहले भाजपा के शासनकाल में ही कमल नाथ द्वारा मण्डला जिले में एक विशाल स्टेडियम की सौगात दे डाली थी, वह भी तब जब भाजपा के फग्गन सिंह कुलस्ते मण्डला से सांसद और केंद्र में मंत्री थे।
     
    इतिहास इस बात का साक्षी है कि कमल नाथ जिन्हें महाकौशल का सर्वमान्य नेता माना जाता है ने महाकौशल के छिंदवाडा, मण्डला, बालाघाट, नरसिंहपुर, डिंडोरी जिलों को कुछ न कुछ सौगात अवश्य दी है, पर जब सिवनी जिले की बात आती है तो सिवनी जिले के विकास में में कमल नाथ का योगदान नगण्य है। सिवनी में एक भी सौगात एसी नहीं कही जा सकती है, जिसके बारे में कमल नाथ के समर्थक गर्व से कह सकें कि यह सिवनी जिले को केंद्रीय मंत्री कमल नाथ के द्वारा प्रदान की गई है। जाहिर है कमल नाथ सामने सामने तो सिवनी के विकास के लिए प्रतिबद्ध होने का दावा करते हैं, पर जब बात विकास की आती है तो सिवनी के प्रति उनका दुराग्रह और सौतेलापन स्वयमेव ही सामने आ जाता है।
     
    सिवनी जिले में केंद्रीय मंत्री कमल नाथ के आभा मण्डल के सप्तऋषियों में अनेकानेक नेता आज भी विद्यमान हैं, जो कमल नाथ के नाम की माला जपते नहीं थकते। जिले में व्याप्त चर्चाओं के अनुसार इन नेताओं के अंदर इतना माद्दा नजर नहीं आता कि ये केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के पास जाकर सिवनी जिले के साथ उन्हीं के भूतल परिवहन मंत्रालय के अधीन होने वाले इस अन्याय का प्रतिकार कर सकें।
     
    सिवनी की फिजां में चल रही चर्चाओं के अनुसार उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारा जो मण्डला और बालाघाट संसदीय क्षेत्र के साथ ही साथ लखनादौन, केवलारी, सिवनी और बरघाट विधानसभा से होकर गुजर रहा है के निर्माण के लिए किसी भी विधायक या संसद सदस्य ने कमल नाथ को पत्र लिखने का साहस नहीं जुटाया है। यहां तक कि कमल नाथ के ''गण'' समझे जाने वाले मध्य प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष ठाकुर हरवंश सिंह ने भी इस मामले मंे मौन ही अख्तियार किया हुआ है। पार्टी हित को सर्वोपरि रखने वाले ठाकुर हरवंश सिंह ने संवैधानिक परंपराओं को ताक पर रखकर विधानसभा के बाहर धरना देना मुनासिब समझा किन्तु सिवनी के हित वाले चतुष्गामी मार्ग के लिए दो लाईन लिखना या धरना देना मुनासिब कतई नहीं समझा। प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यक्ता है। सिवनी की जनता अब भली भांति समझ चुकी है कि कौन सा राजनेता सिवनी का भला सोच रहा है और कौन सा राजनेता आपने निहित स्वार्थों को सिवनी के स्वार्थ के आगे प्राथमिकता दे रहा है।
     
    जिले में चल रही चर्चाओं के अनुसार केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के ''गुर्गों'' द्वारा इस मामले में आपने आका से इस मामले में अब तक जवाब सवाल क्यों नहीं किया गया? चर्चा तो यहां तक भी है कि इसके पहले कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र  छिंदवाडा को सामान्य से सुरक्षित किया जा रहा था, जिसे बचाने के लिए सिवनी संसदीय क्षेत्र को बली चढा दिया गया। इस समय भी कमल नाथ के सिवनी स्थित झंडाबरदारों ने ''सिवनी के हितों को गोड कर अपने आका कमल नाथ के हितों को'' प्राथमिकता दी थी। इस बार भी कमोबेश यही होता नजर आ रहा है।
     
    यही कारण है कि पिछले साल 21 अगस्त को जब गली गली में कमल नाथ के पुतलों को जूते चप्पलों से पीट पीट कर जलाया गया, कमल नाथ की सांकेतिक शवयात्रा निकाली गई तब कमल नाथ के समर्थक मूकदर्शक बने बैठे रहे। कहा जा रहा है कि इसी बात से खफा होकर कमल नाथ ने अब प्रण कर लिया है कि चाहे कुछ भी हो जाए पर उत्तर दक्षिण गलियारा सिवनी से होकर कतई नहीं जाएगा। वैसे पिछले साल 21 अगस्त को हुए एतिहासिक बंद को नेशनल मीडिया ने जिस तरह तवज्जो दी थी, उसे देखकर भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ तक हिल गए थे। विडम्बना यह है कि यह आंदोलन क्रमबद्ध रूप से जारी नहीं रह सका, वरना देश के शासकों को सिवनी वासियों के आगे घुटने टेकने ही पडते।
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